Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
View full book text
________________ जीर्ण-शीर्ण स्थिति को देखा तो उनके मन में बहुत दुःख हुआ / उन्होंने देवलोक में जाकर पाँचवें देवलोक के इन्द्र ब्रह्मेन्द्र को शत्रुञ्जय तीर्थ के मन्दिरों की जीर्ण-शीर्ण स्थिति से अवगत कराया / ब्रह्मेन्द्र ने तुरन्त ही वहाँ जाकर इस तीर्थ का उद्धार कराया और सभी चैत्यों का पुनः निर्माण करवाया / छट्ठा उद्धार - चमरेन्द्र शत्रुञ्जय तीर्थ के पाँचवें उद्धार को एक लाख करोड़ सागरोपम काल व्यतीत हो चुका था / उस समय एक बार चमरेन्द्र अपने परिवार के साथ नन्दीश्वर द्वीप की यात्रा के लिए गया / मार्ग में उसे दो विद्याधर मुनि मिले / मुनि भगवन्त ने उपदेश धारा के साथ-साथ शत्रुञ्जय तीर्थ की महिमा का गुणगान किया और तीर्थ की महत्ता को समझाया, जिसे सुनकर चमरेन्द्र के मन में शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा करने की भावना पैदा हो गई / वह तुरन्त परिवार सहित शत्रुञ्जय तीर्थ पर गया, वहाँ जाकर जैसे ही उसने मन्दिरों की जीर्ण स्थिति को देखा तो बहुत दुःखी हुआ / तब उसने तीर्थ का उद्धार किया और जिनालयों का जीर्णोद्धार कराया / सातवाँ उद्धार - सगर चक्रवर्ती ___ इस अवसर्पिणी काल में जब दूसरे तीर्थंकर श्री अजितनाथ प्रभु हुए तब उनके समय में भरतक्षेत्र में दूसरे सगर चक्रवर्ती हुए थे / ____ सगर चक्रवर्ती के जह्वकुमार आदि 60 हजार पुत्र थे / वे एक बार अष्टापद तीर्थ की यात्रा के लिए गए / वहाँ पर अष्टापद तीर्थ की रक्षा के लिए उन्होंने पर्वत के चारों ओर खाई खोदी / गहरी खाई खोदने से पानी नागकुमार देवताओं 77