Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ चौथा उद्धार - माहेन्द्र इन्द्र शत्रुञ्जय महातीर्थ के तीसरे उद्धार के एक करोड़ सागरोपम काल का समय व्यतीत हो चुका था / एक बार अनेक देवी-देवता चैत्री पूर्णिमा के शुभ दिन शत्रुञ्जय की यात्रा के लिए जा रहे थे / तभी मार्ग के मध्य में हस्तिसेन नगर की अधिष्ठायिका सुहस्ति देवी - जो कि मिथ्यादृष्टि थी, उसने शत्रुञ्जय को नष्ट प्रायः कर दिया था / जब सभी देवी-देवता शत्रुञ्जय के निकट आए, तब उस देवी ने माया से अनेक पर्वतों की रचना कर दी / यह विचित्र घटना देखकर सभी देवता सोचने लगे कि यह क्या बात है ? अन्त में अवधिज्ञान के द्वारा देवों ने सत्य घटना को जाना और उस दुष्ट देवी पर कोपायमान हो गए / देवताओं के क्रोध को देखकर देवी ने उनसे माफी माँगी और अपनी भूल को स्वीकार किया / तत्पश्चात् उस देवी ने प्रभु की शरण को स्वीकार किया / शत्रुञ्जय तीर्थ पर जाकर जब तीर्थ की जीर्ण-शीर्ण स्थिति को देखा तब उनके मन में बहुत दुःख हुआ / उसके पश्चात् चौथे देवलोक के अधिपति माहेन्द्र इन्द्र ने शत्रुञ्जय के मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया / / पाँचवाँ उद्धार - ब्रह्मेन्द्र शत्रुञ्जय के उद्धार को दस करोड़ सागरोपम काल व्यतीत हो चुका था / एक बार कुछ सम्यग्दृष्टि देव ऐरावत क्षेत्र में जिनेश्वर भगवान का जन्मकल्याणक मनाकर नन्दीश्वर द्वीप में गए / वहाँ से वापिस आकर सभी शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा के लिए आए / वहाँ आकर उन्होंने जब मन्दिरों की 76