Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ माता की, सुनन्दा तथा सुमंगला की, ब्राह्मीसुन्दरी की, नव्वाणु भाइयों की सभी मणिमय रत्नों की मूर्ति बना कर तीर्थ पर पधराई और नाभ गणधरजी से प्रतिष्ठा कराई, तीर्थमाला को पहना, तत्पश्चात् गोमुख यक्ष तथा चक्रेश्वरी देवी को तीर्थ के रक्षक रूप में रखा / इस प्रकार भरत महाराजा ने तीर्थ का प्रथम उद्धार करके महान यश को प्राप्त किया / इन्द्र महाराजा ने भी भरत महाराजा की खूब-खूब प्रशंसा करते हुए कहा कि भरत महाराज की कोई भी बराबरी नहीं कर सकता / ऐसा शत्रुञ्जय माहात्म्य में वर्णन है। द्वितीय उद्धार - दण्डवीर्य राजा भरत चक्रवर्ती के मोक्ष में जाने के 6 करोड़ पूर्व वर्ष व्यतीत हो जाने के पश्चात् अयोध्या में भरत की आठवीं पाट पर दण्डवीर्य नाम का राजा हुआ | उसे साधर्मिक भक्ति में अत्यन्त रूचि थी / एक बार राजा की साधर्मिक भक्ति की परीक्षा लेने के लिए सौधर्म इन्द्र श्रावक का वेश बनाकर अयोध्या में आया / दण्डवीर्य राजा ने उसे भोजन का आमन्त्रण दिया / श्रावक वेश में रहे इन्द्र ने करोड़ों श्रावकों के लिए बनाए हुए भोजन को अकेले ने ही खा लिया / और पुनः कहने लगा कि मैं तो अभी बहुत भूखा हूँ मुझे ओर भोजन दो / उसी समय दण्डवीर्य राजा भी वहाँ आ गया / उसने पुनः भोजन तैयार कराया / परन्तु वह भोजन भी क्षण भर में उसने खा लिया / सभी हैरान थे कि यह कौन है ? इन्द्र ने कहा कि यदि तुम मुझे पेट भर भोजन नहीं खिला सकते तो दूसरों को क्या खिलाओगे ? तुम भरत के सिंहासन को लज्जित क्यों कर रहे हो ? उसी समय पास में खड़े मन्त्री ने वास्तविक स्थिति को समझते हुए राजा को कहा कि यह मनुष्य नहीं लगता | श्रावक के वेश में कोई देव होना चाहिए। उसी समय दण्डवीर्य राजा ने धूप आदि करके कहा- हे देव ! आप अपना रूप प्रकट करो | उसी समय इन्द्र ने अपना मूल स्वरूप प्रकट किया और 74