Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ माता कुन्ती ने कहा- हे पुत्रों ! युद्ध के इन पाप कर्मों से निर्मल होने के लिए सिद्धगिरि शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा के सिवाय दूसरा कोई उपाय नहीं है / आप श्री आदिनाथ परमात्मा की शरण में जाओ और जीवन में किए पापों का प्रक्षालन करो / माता की आज्ञा को प्राप्त करके उन पाँचों पाण्डवों ने अपने कर्मों को क्षय करने के लिए शत्रुञ्जय तीर्थ का महान संघ निकाला और वहाँ पर जाकर परमात्म भक्ति की / जीर्ण अवस्था में पड़े हुए चैत्यों का उद्धार किया / ___ अन्त में उन सभी पाण्डवों ने द्रौपदी तथा माता कुन्ती सहित दीक्षा अंगीकार की / शुद्ध संयम की साधना करके इसी शत्रुञ्जय महातीर्थ पर अनशन करके आसो सुदी पूनम के दिन बीस करोड़ मुनियों के साथ शाश्वत अजर-अमर मोक्षपद को प्राप्त किया / इस प्रकार पाण्डवों ने इस तीर्थ का बारहवाँ उद्धार किया / . चौथे आरे ए थया, सवि मोटा उद्धार / सूक्ष्म उद्धार वच्चे थया, कहता ना आवे पार || श्री शत्रुज श्री शत्रुजय तीर्थ का 13वाँ उद्धार श्री वज्रस्वामीजी और जावड़शा श्री सिद्धगिरि राज के पंचम काल के उद्धारों में सर्व प्रथम नाम सूर्य के समान चमकता है जावड़ शा का | जावड़शा के पिता का नाम भावड़शा तथा माता का नाम था भावला | परिवार की स्थिति सामान्य थी / मुश्किल से दो समय भोजन करके जीवन व्यतीत कर रहे थे / एक बार उनके घर दो मुनिराज गौचरी के लिए पधारे / भावला ने उल्लास भरे हृदय से गुरु को सुपात्र दान दिया / गुरु जब धर्मलाभ देकर जाने लगे तब भावला ने हाथ जोड़कर पूछा- हे कृपालु गुरुदेव ! क्या हमें