Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ भव्य मन्दिर बनाया / उसी मन्दिर में चन्द्रशेखर मुनि की प्रतिमा भी स्थापित की / राजर्षि के हाथों से उस मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई / उस समय आकाशवाणी हुई कि- हे भव्य प्राणियों ! जो इस तीर्थ का ध्यान करेगा वह उच्च गति को प्राप्त करेगा / आज भी यह तीर्थ प्रभास पाटण के नाम से प्रसिद्ध है। ___ तत्पश्चात् राजर्षि चन्द्रशेखर ने अपने पुत्र को शत्रुञ्जय तीर्थ के उद्धार की प्रेरणा दी। पिता मुनि की प्रेरणा पाकर चन्द्रयश राजा ने अत्याधिक उल्लास से शत्रुञ्जय तीर्थ छ:री पालित यात्रा संघ निकाला | मार्ग में आते हुए अनेक. मन्दिरों का जीर्णोद्धार भी कराया / जब संघ शत्रुञ्जय पहुँचा तो राजा ने तीर्थ को जीर्ण-शीर्ण दशा में देखा / राजा का मन बहुत दुःखी हुआ | तुरन्त ही राजा ने उसका जीर्णोद्धार कराया / अन्त में चन्द्रयश राजा ने भी दीक्षा और मोक्ष पद को प्राप्त किया / दसवाँ उद्धार - चक्रधर राजा , शत्रुञ्जय महातीर्थ का दसवाँ उद्धार श्री शान्तिप्रभु के शासनकाल में हुआ था / श्री शान्तिनाथ प्रभु पृथ्वी तल को पावन करते हुए एक बार हस्तिनापुर नगर में पधारे / प्रभु के आगमन का समाचार सुनकर तीनखण्ड का अधिपति चक्रधर राजा प्रभु को वन्दन करने के लिए आया / प्रभु ने अपनी धर्मदेशना में शत्रुञ्जय तीर्थ की महिमा, संघ, जिनपूजा तथ संघपति के स्वरूप का वर्णन किया / राजा ने विनन्ती की- प्रभो ! मुझे संघपति पद प्रदान करो / उसी समय 80