Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ घोर पापों का आचरण करते हैं / तीर्थ स्थानों में आकर यदि तीर्थों की, मर्यादा और नियमों का पालन न करें तो वह यात्रा निकाचित कर्मों को बान्धने वाली बन जाती है / तीर्थ स्थानों में जाकर सेवन किया गया पाप कर्म का विपाक बताये बिना नहीं रहता है / परिणाम स्वरूप अकल्पनीय उपाधि जीवन में आ जाती है। अतः सदा सावधान होकर शान्त चित्त से विचार करना चाहिए / इस पवित्र तीर्थ के माहात्म्य को जानकर सभी भव्यात्माएँ शाश्वत पद के भोक्ता बनें यही मंगलकामना है / तपो मूला हि सिद्धयः / तप के महाप्रभाव से अनेक प्रकार की उत्कृष्ट सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। उत्तम तपस्वी के पास सिद्धियाँ स्वयं आने लगती हैं / तप में वह असीम शक्ति होती है, जिससे आठ प्रकार के कर्मों का क्षय हो जाता है। 70