Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
View full book text
________________ के मुझ पर अनन्ता उपकार हैं / उन उपकारों से कुछ ऋण मुक्ति के लिए मैं आपश्री के चरणों में उपस्थित हुआ हूँ | मेरे योग्य कोई कार्य सेवा हो तो कृपा कीजिए / आचार्य भगवन्त ने कहा- हे मणिभद्र ! आगरा चातुर्मास के बाद हमारे समुदाय के साधुओं पर आपत्ति रूपी तूफानों की आँधी आ गई हैं / मेरे दस-दस शिष्य मुनिवर चित्त भ्रमित बनकर मरण की शरण चले गए हैं / अभी भी एक मुनिराज चित्त भ्रम से पीड़ित होकर पागल की तरह घूम रहे हैं / हे इन्द्रराज ! मुनियों पर आए हुए इस घोर उपसर्ग के कारण को खोजकर उसका निवारण कीजिए और शासन की रक्षा हेतु अपनी शक्ति का सदुपयोग कीजिए / गुरु वचनों को सुन तुरन्त मणिभद्रजी ने कहा गुरुदेव ! आपश्रीजी निश्चिन्त हो जाइये / आप पर आए विघ्नों का शीघ्र ही निवारण हो जाएगा / मणिभद्रजी ने अवधिज्ञान में उपयोग देकर जाना कि इस उपद्रव को करने वाले दूसरे कोई नहीं परन्तु मेरी सेना के मेरे ही सेवक काला-गोरा भैरव हैं / दोनों को बुलाकर मणिभद्रजी ने कहा- अरे देवता के वेश में दानव 1 को भी न शोभे ऐसे क्रूर कृत्य तुम क्यों कर रहे हो ? देवात्मा बनकर पापात्मा जैसे पाप कृत्य करते तुम्हें लज्जा नहीं आती / तप, त्याग और संयममय जीवन जीने वाले, सम्यग् ज्ञान द्वारा जगत जीवों को प्रकाशमय बनाने वाले, ऐसे महामुनि तो भक्ति के पात्र हैं और तुम उनको मृत्यु के मुख में क्यों भेज रहे हो ? काले-गोरे भैरव ने कहा- स्वामीनाथ ! हम आपके सेवक हैं, आप हमारे स्वामी हैं / परन्तु लोंकागच्छ के आचार्य ने हमारी उपासना करके मन्त्रशक्ति से हमें बान्ध लिया है, हमने भी उनको वचन दे दिया है कि तुम्हारी इच्छानुसार 'हम धीरे-धीरे आचार्य हेमविमलसूरिजी और उनके साधुओं को चित्त भ्रमित करके मरण की शरण भेज देंगे / हम जानते हैं कि यह हमारा पाप कार्य है, फिर भी आपके क्रोध का भाजन बनने पर भी उनके वचनबद्ध होने से हम यह 39