Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ सम्मेतशिखर तीर्थ तथा अधिष्ठायक श्री भोमियाजी देव - बीस-बीस तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि सम्मेतशिखर तीर्थ के नाम से कोई भी अपरिचित नहीं है / ऋषभदेव भगवान, वासुपूज्य स्वामीजी, नेमीनाथ प्रभु और चरम तीर्थपति भगवान महावीर स्वामीजी को छोड़कर शेष वीस तीर्थंकरों ने इसी भूमि पर निर्वाण पद को प्राप्त किया था / प्राचीनकाल में सम्मेतशिखर पहाड़ की वीस टूकों पर भव्य जिन मन्दिर बने हुए थे / किन्तु विधर्मी आक्रमणों के कारण मन्दिर जीर्ण-शीर्ण होकर विध्वंस हो गए / नवीं शताब्दी में वनवासी गच्छ के आचार्य श्री प्रद्युम्नसूरिजी महाराज ने इन्हीं निर्वाण स्थलों पर स्तूपों की स्थापना कराई / विक्रम सम्वत् 1526 में आगरा के सेठ कुमारपाल सोनपाल लोढ़ा ने इसका जीर्णोद्धार कराया / मुर्शिदाबाद के सेठ फतेहचन्द के पुत्र जगत सेठ महताबराय ने विक्रम सम्वत् 1812 में इस पारसनाथ पहाड़ को कर मुक्त घोषित कराया / सेठ की प्रबल भावना थी कि इसका जीर्णोद्धार कराया जाए और चरण पादुका स्थापित की जाए / परन्तु योगानुयोग उनका अचानक देहावसान हो गया / जीर्णोद्धार की योजना अधूरी रह गई। जगत सेठ के दो पुत्र थे सेठ खुशालचन्द तथा सेठ सुगानचन्द | बादशाह आलम ने वि. सं. 1822 को सेठ खुशालचन्द को जगत सेठ की पदवी दी / तीर्थ के जीर्णोद्धार का कार्य चालू हो गया / जगत सेठ खुशालचन्द जीर्णोद्धार का कार्य देखने के लिए मुर्शिदाबाद से हाथी पर बैठकर आया जाया करते थे / इसी बीच पंन्यासप्रवर श्री देवविजयजी गणि सम्मेतशिखर की यात्रा के लिए पधारे | जगत सेठ खुशालचन्द ने गुरु के पास जाकर वन्दन आदि करके कहा- पूज्य गुरुदेव जी ! मेरी भावना है प्रत्येक तीर्थंकरों के निर्वाण स्थल पर उनकी चरण पादुकाएँ स्थापित की जाएँ / परन्तु मूल स्थान कौन-सा है इसका निर्णय कैसे और कौन करें ? 45