Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ सुरक्षा कर्मचारियों के साथ समस्त राज परिवार और श्रावक वर्ग ने तीर्थ यात्रा प्रारम्भ की / युवराज के मन में अति उल्लास था / मन में हर्ष समा नहीं रहा था / निर्वाण भूमि को भेटने की तीव्र उत्कण्ठा से तेज गति से आगे-आगे बढ़ रहे थे। ___मार्गदर्शकों ने ऊँची टोंच पर चढ़कर बताया- हे युवराज ! वह इस पर्वत की सबसे ऊँची ट्रॅक है / तेइसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ भगवान का निर्वाण इसी स्थान पर हुआ था / अश्वारूढ़ हुए कुमार शीघ्र ही सुवर्ण भद्र ट्रैक पर पहुँचे / कुमार का हृदय हर्ष से गद्गद् हो रहा था / रोमराजी विकसित हो गई थी / कुमार ने तीन बार उस स्थान की प्रदक्षिणा दी / तत्पश्चात भाव विभोर होकर बोला- हे प्रभु ! आज मेरा जीवन धन्य हो गया / आपकी पवित्र निर्वाण भूमि का स्पर्श करके मेरे जन्म-जन्म के पापों का प्रक्षालन हो गया / युवराज की आँखों से हर्ष के आँसू बहने लगे | भावों के प्रवाह में बहता हुआ राजकुमार नाचने लग गया / संध्या के समय सभी लोग वापिस पर्वत के नीचे तलहटी में आ गए / ___ दूसरे दिन प्रात:काल युवराज ने मार्गदर्शकों से पूछा- क्या पहाड़ के सामने से ऊपर चढ़ने का कोई सीधा मार्ग नहीं है ? वे बोले- युवराज ! सीधा मार्ग अत्यन्त विकट है / यह देखो पहाड़ की सीधी चढ़ाई, आजू-बाजू गहरी खाइयाँ, सघन झाड़ियाँ और उसमें छिपे हुए सिंह, भालू आदि जंगली जानवर / यह सीधा मार्ग अति विकट है / सभी यात्री पीछे से होकर ही पहाड़ पर जाते हैं। ___ युवराज चन्द्रशेखर ने कहा- भैया ! कोई बात नहीं, हमें वह सीधा मार्ग बताओ / हम उसी रास्ते से आज जाएँगे / देखो कुमार! वह सामने सीता नाला है, उसके पास ही ऊपर जाने के लिए एक सीधी पगडण्डी है / कुमार घोड़े पर बैठा और बोला- आप सभी यहाँ ठहरो, मैं अकेला ही पहाड़ पर जाकर रास्ता ढूँढूँगा। युवराज अश्वारूढ़ होकर सीता नाले के पास से धीरे-धीरे पगडण्डी के 50