Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ नीचे की भूमि को पुनः शुद्ध कराया और वहाँ पर एक सुन्दर देवालय बना कर भैरव देव (भोमिया जी) की स्थापना की / मन्त्र पाठ बोलकर प्रसाद चढ़ाकर सेठ ने भोमियाजी देव से प्रार्थना की- हे तीर्थ रक्षक देव ! इस तीर्थ स्थान की सम्पूर्ण जिम्मेदारी आपके ऊपर है | आप तीर्थ की तथा तीर्थ यात्रियों की सदा रक्षा करें / सबकी यात्रा निर्विघ्न सम्पन्न करें / सभी की मनोकामना पूर्ण करें / उसी दिन से भोमियाजी देव सम्मेतशिखर तीर्थ अधिष्ठायक रक्षक देव बन गए / तभी से जो भी यात्री तीर्थ दर्शन के लिए आते हैं वे पहाड़ पर चढ़ने से पूर्व वे भोमिया जी महाराज का दर्शन वन्दन करते हैं प्रसाद बाँटते हैं और निर्विघ्न यात्रा सम्पन्न करते हैं / एक बार एक यात्रा संघ दर्शन करने आया / उसमें अनेकों श्रावक-श्राविकाएँ थी / सभी भोमियाजी का दर्शन करके यात्रा करने पहाड़ पर चढ़ गए / यात्रा करके लौटते समय कुछ लोग मार्ग में भटक गए उन्हें नीचे उतरने का रास्ता नहीं मिल रहा था / सूर्यास्त हो रहा था / अन्धेरे में कुछ भी दिखाई नहीं देने से सभी चिन्तातुर होकर वहाँ पर खड़े हो गए / किधर से जाएँ उनको कुछ सूझ नहीं रहा था / तभी एक काले भूरे रंग का श्वान (कुत्ता) उनके सामने आकर भौं-भौं करने लगा / एक वृद्ध श्रावक ने कहा- देखो-देखा यह कुत्ता हमें कुछ कह रहा है। तभी वह श्वान आगे-आगे चलने लगा / ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई अंधेरे में लालटेन लेकर रास्ता दिखा रहा हो / श्रावकगण श्वान के पीछे-पीछे चलने लगे और पार्श्वनाथ भगवान की तथा भोमियाजी देव की जय-जय बोलने लगे / इस प्रकार उस कुत्ते के पीछे-पीछे चलते हुए सभी यात्री पहाड़ से नीचे सुरक्षित पहुँच गए / जैसे ही नीचे तलहटी पर पहुंचे तो उन्होंने लोगों को आप बीती सारी बात बताई / लोगों ने कहा- इस तीर्थ पर जब भी कोई यात्री मार्ग भूल जाता है या संकट में फँस जाता है तो भोमिया जी महाराज श्वान के रूप में प्रकट होकर उनकी सहायता करते हैं / 56