Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ . नव्वाणु यात्रा इस तीर्थ की विशेष आराधना है / युगादिनाथ प्रभु ऋषभदेवजी इस गिरिराज पर केवलज्ञान की प्राप्ति पश्चात् पूर्व नव्वाणु बार पधारे थे (84 लाख को 84 लाख से गुणा करें तो एक पूर्व होता है) उसी की याद में आराधक आत्माएँ इस महान तीर्थ की 99 यात्रा करती है / इसी 99 यात्रा के बीच में ही 9 कों की 9 यात्रा तथा डेढ़ कोसी, तीन कोसी तथा छः कोसी यात्रा भी तपस्या के साथ की जाती है | जो पुण्यवत आत्माएँ निर्जल (चौविहार) छ? तपपूर्वक इस तीर्थ की सात यात्राएँ करती हैं, वे प्रायः तीसरे भव में मोक्षपद को प्राप्त करती हैं। रायण वृक्ष जब प्रभु केवलज्ञान पश्चात् सिद्धगिरि पर पधारे तब रायण वृक्ष के नीचे देवताओं ने समवसरण की रचना की थी / यह रायण वृक्ष भी शाश्वत है / आदिनाथ दादा की चरण पादुका से शोभायमान है / इसके प्रत्येक पत्र, फल, शाखा पर देवी-देवताओं का निवास है / अतः कभी भी इसके पत्ते या फल तोड़ने नहीं चाहिये / इस वृक्ष की स्वर्ण, रत्न, मणि, माणिक, मोती से यदि पूजा की जाए तो उसका डाकिनी, शकिनी, भूत, प्रेत, बेताल आदि का वलगाड़ तथा उपद्रव शान्त (दूर) हो जाता है / इस वृक्ष के स्वाभाविक रूप से स्वयमेव से नीचे गिरे पत्ते-पुष्प-शाखा आदि यदि मिल जाये तो प्राणों के समान सम्भालकर रखना चाहिए, उसके जल के सिंचन करने से सभी प्रकार के अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं। इस वृक्ष की पश्चिम दिशा की ओर एक दुर्लभ रसकूँपिका है / उसके स्पर्श मात्र से लोहा सोना बन जाता है / परन्तु जिसने अट्ठम तप किया हो और चक्रेश्वरीदेवी की नित्यक्रम से आराधना, भक्ति-पूजा करता हो वह विरला पुरुष ही इस रसकूँपिका को प्राप्त कर सकता है / यदि रायण वृक्ष प्रसन्न हो जाए तो उसे दूसरी किसी वस्तु की जरूरत नहीं रहती / ऐसा यह रायण वृक्ष महाप्रभावशाली यह गिरिराज प्रायः शाश्वत कहा गया है / कहा भी है कि 61