Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ शत्रुजय तीर्थ की महिमा विश्व के प्रत्येक धर्म में तीर्थ स्थानों को मन्त्रों, यन्त्रों और पर्यों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है / दुनियाँ में यन्त्र तो बहुत है यंत्राधिराज का पद सिद्धचक्र यन्त्र को मिला है / पर्व भी बहुत हैं लेकिन पर्वाधिराज का विरुद .. पर्युषण पर्व को दिया गया है / इसी तरह विश्व में तीर्थ भी बहुत हैं परन्तु . शत्रुञ्जय तीर्थ को तीर्थ न कह कर तीर्थाधिराज कहा गया है / इस अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव प्रभु ने पुण्डरीक गणधर के आगे कहा था कि यह तीर्थ शत्रुञ्जयगिरि मोक्ष का निवास स्थान है / इस गिरिराज पर चढ़ने वाले प्राणी अति दुर्लभ लोकान पर रहे हुए सिद्धस्थल को शीघ्र प्राप्त कर लेते हैं / जैसे पर्वतों में सुमेरू पर्वत, द्वीपों में जम्बूद्वीप मुख्य है वैसे ही सभी तीर्थों में शत्रुञ्जय तीर्थ शिरोमणि है / इस तीर्थ स्थान की भूमि अति पवित्र है | यह सम्पूर्ण गिरिराज सिद्ध आत्माओं का स्मृति मन्दिर है / इसी गिरि के कंकर-कंकर में भूतकाल में अनन्त आत्माओं ने कर्म संचय को क्षय करके सिद्धगति को प्राप्त किया है तथा भविष्य में भी अनन्त आत्माएँ इसी प्रकार इस गिरि के आलम्बन से सिद्ध बनेंगी / इस पावन तीर्थ में सभी स्थानों पर देवताओं का निवास है / यहाँ पर देवाधिदेव की भक्ति में असंख्य देवी-देवता हाजर-हजूर रहते हैं / ऐसे गिरिराज की यात्रा भवसागर से तरने के लिए बहुत बड़े जहाज के समान है / भरतक्षेत्र के मनुष्यों का सौभाग्य है कि तीनों भुवन में तथा चौदह राजलोक में ऐसा अजोड़-बेजोड़ अद्वितीय सिद्धगिरि महातीर्थ प्राप्त हुआ है। मनुष्य भव प्राप्त करके जो आत्माएँ इस तीर्थ की स्पर्शना नहीं करती उनका अभी गर्भावास ही माना गया है / पशु-पक्षी भी जो इस तीर्थ पर आते हैं वे भी अल्प भवों में भवबन्धन से मुक्त हो जाते हैं | क्रूर पापी, अभव्य प्राणी इस पर्वत का स्पर्श भी नहीं कर सकते / इस तीर्थ पर किया हुआ थोड़ा-सा तप तथा दान निकाचित् कर्मों का नाश कर देता है / 60