Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ 1. मालवा में उज्जैन इनकी जन्मभूमि है | बावन वीरों के साथ रहने वाली भूमि में बहुत बड़े वटवृक्ष के नीचे मणिभद्रवीरजी का मस्तक पूजा जाता है / 2. गुजरात में बीजापुर के पास आगलोड़ गाँव में वटवृक्ष के नीचे वीरजी ने स्वयं ही अपना स्थान माँगा था वहाँ पर मणिभद्रवीरजी का धड़ पूजा जाता 3. गुजरात में पालनपुर के पास मगरवाड़ा इनकी स्वर्गभूमि है | गुरु आज्ञा से उन्होंने वहाँ पर निवास किया है अतः यहाँ पर श्रीमणिभद्रवीरजी के चरण पूजे जाते हैं / __ आगलोड़ में वीरजी के धड़ की स्थापना करने वाले आचार्य श्री. शान्तिसोमसूरीश्वरजी म. थे / उन्होंने श्री मणिभद्रवीरजी को प्रत्यक्ष करने के लिए 121 उपवास की दीर्घ साधना की थी / तब मणिभद्रवीरजी ने उनको प्रत्यक्ष दर्शन दिया था / वीरजी के कथनानुसार आचार्यश्रीजी ने वि. सं. 1733 महासुदी पंचमी के शुभ दिन आगलोड़ नगर के बाहर मणिभद्रवीरजी द्वारा बताए हुए स्थान पर मिट्टी से बने हुए पिण्ड का धड़ स्थापित किया / आचार्य श्री शान्तिभद्रसूरिजी ने ही उनकी प्रतिष्ठा कराई थी / तभी से आगलोड़ में मणिभद्रजी की महिमा अत्यन्त वृद्धिगत हुई / पूज्य आचार्य भगवन्त को मणिभद्रजी ने कहा कि आचार्य पदवी होने के बाद जो भी गुरु भगवन्त मगरवाड़ा तक न जा सके वे आगलोड़ आकर भी यदि आराधना करें और मुझे धर्मलाभ की आशीष दें मैं उनकी प्रत्येक इच्छा पूर्ण करूँगा और जिनशासन की प्रभावना में सदैव सहायता करता रहूँगा / ___ आचार्य हेमविमलसूरिजी महाराज वि. सं. 1583 आसो सुदी तेरस को वीसनगर में कालधर्म का प्राप्त हुए / इन्होंने यक्षाधिराज मणिभद्रजी की सहायता से संघ, शासन और समुदाय के बहुत कार्य किए / इनके कारण ही तपागच्छ थोड़े ही समय में खूब सुरक्षित और संवर्धित बना / इनके पाट पर विराजमान पूज्य श्री आनन्दविमलसूरिजी महाराज ने भी 42