Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
View full book text
________________ पताका गगनचुम्बी बनकर लहरा रही है और इनके उपकार की गंगोत्री अविरल रूप प्रवाहित हो रही है / आज भी भारत के जैन मन्दिरों में, उपाश्रयों में श्री मणिभद्रवीरजी की सुन्दर देहरी, गोखले निर्मित हैं जिसमें सिन्दूर, मिट्टी, पाषाण, पंच धातु आदि के विविध मुद्रा में दर्शनीय पिण्ड और प्रतिमाएँ सुशोभित हो रही हैं। तपागच्छ अधिष्ठायक, प्रगट प्रभावी, एकावतारी, भद्र परिणामी श्री मणिभद्रजी को हमारी प्रार्थना है कि हे यक्षाधिराज ! विक्रम की सोलहवीं सदी से भी इक्कीसवीं सदी का वातावरण अधिक विकृत है अत: आज के इस विषमकाल में आपकी अत्याधिक आवश्यकता है अतः पधारो- पधारो, रक्षा करो, रक्षा करो, तपागच्छ पर अपनी कृपादृष्टि की वृष्टि करो यही आपसे अभ्यर्थना है / अंधियारे तमे घोरे, चिटुंति पाणिणो बह / को करिस्सई उज्जोसं, सव्वलोगम्मि पाणिणं // उत्तराध्ययन 23/25 आज चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार छाया है, सीधे-सादे और भद्र जीव इस अन्धकार में इधर-उधर भटक रहे हैं। इस भयंकर अन्धकार की कालरात्रि का कब अन्त होगा ? कौनसा सूर्य इस पृथ्वी पर प्रकाश की रश्मियाँ बिखेर कर, इस संसार को आलोकित करेगा। 44