Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ कृत्य छोड़ नहीं सकते / आप ही कहिए हम उनके साथ वचनद्रोह कैसे कर, . सकते हैं ? मणिभद्रजी ने आवेश में आकर कहा- हे भैरव देवों ! तुम वचन द्रोह नहीं परन्तु स्वामी द्रोह कर सकते हो ? यदि तुम इस दुष्टकृत्य से पीछे नहीं हट सकते तो मेरे साथ युद्ध करने के लिए तैयार हो जाओ / इस प्रकार के पड़कार को सुनकर काले गोरे भैरव और मणिभद्रजी का परस्पर युद्ध हुआ / अल्प समय. में ही दोनों पराजित हो गए और मणिभद्रजी के चरणों में गिरकर क्षमा माँगते हुए बोले- हे स्वामी ! हमारा अपराध क्षमा करो / अब हम कभी भी आपके उपकारी गुरुदेव और उनके साधुओं को जरा भी हैरान नहीं करेंगे / परन्तु हमारी आपसे एक विनती है कि आपश्रीजी की जहाँ-जहाँ स्थापना हो वहाँ-वहाँ. आपके सेवक के रूप में हमारी भी स्थापना होनी चाहिए / मणिभद्रजी ने मुस्कुराते हुए उनकी प्रार्थना को स्वीकार किया / उसी दिन से आचार्यश्रीजी के शिष्यों पर हो रहा उपद्रव सदा के लिए दूर हो गया / बीमार साधु भी स्वस्थ हो गए। ___ तत्पश्चात् मणिभद्र इन्द्र श्री हेमविमलसूरिजी के चरणों में उपस्थित होकर सविनय बोले- हे गुरुदेव ! आप अभी जिस रायण वृक्ष के नीचे विराजमान हैं इसी जगह पर मेरी देह निष्चेष्ट हुई थी, आपश्रीजी के पुण्य प्रभाव से ही मैं यक्षेन्द्र मणिभद्र बना हूँ | कृपा करके इसी स्थल पर आपश्रीजी मेरे पैर की पिण्डी की स्थापना कीजिए और मन्त्राक्षरों द्वारा उसकी प्रतिष्ठा विधि कराइये / यह मेरी एकमात्र इच्छा है / आचार्य भगवन ने अपनी अनुमति देते हुए कहा- हे यक्षराज ! जैसे अभी आपने हमारी सहायता की है वैसे ही भविष्य में समस्त तपागच्छ के ऊपर कोई संकट न आए उसके लिए सदैव जागृत रहना / क्योंकि तपागच्छ को सुरक्षित रखने के लिए किसी देवी बल की अपेक्षा है और वह अपेक्षा आप ही पूरी कर .. सकते हो ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है / चकोर को टकोर ही पर्याप्त होती है | मणिभद्रजी ने कहा- गुरुदेव ! 40