Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ जितना दुख था उतना दूसरे पक्ष का सुख भी था कि सेठ जीवन को धर्ममय , बनाकर और अन्तिम समय सिद्धगतिदायक सिद्धगिरि के ध्यानपूर्वक मृत्यु को प्राप्त हुआ है। ___ आचार्यश्री हेमविमलसूरिजी अभी आगरा में ही विराजमान थे / चातुर्मास पूर्ण होने के बाद अभी विहार नहीं किया था / इसी बीच जोरदार जरबदस्त मुसीबतों की आँधी आ गई / जब से लोंकागच्छ के यतियों को समाचार मिला कि श्री हेमविमलसूरिजी ने माणेक शा को पुनः सत्य धर्म में स्थिर कर दिया है वह पुनः जिन पूजा, गुर. , भक्ति और जिनवाणी का श्रवण करता हआ हठव्रती बन गया है। तभी से व यति श्री हेमविमलसूरिजी के प्रति ईर्ष्या को धारण करने लगे / क्योंकि वे सोच रहे थे कि यदि माणेक शा जैसा व्यक्ति हमारे पक्ष में आ गया तो दूसरे हजारों लोग हमारे पक्ष को मानने वाले हो जाएँगे / परन्तु उनकी सारी आशाएँ आचार्यश्री हेमविमलसूरिजी के कारण धूल में मिल गई / इसलिए लोंकागच्छ के यति उनको जहरी नाग की भाँति क्रोध भरी दृष्टि से देख रहे थे वे किसी भी प्रकार वैर का बदला लेने के लिए तड़प रहे थे इसलिए उन्होंने मन्त्र साधना का प्रयोग करके काले गोरे भैरव को अपने वश में किया / यतिनायक ने एक दिन भैरव देव को याद किया कि वह तुरन्त हाजिर हो गया और बोला- आपने मुझे क्यों याद किया ? जो कार्य हो कहिए, मैं आपकी आज्ञा पालन करने के लिए तैयार हूँ। सत्तावाही स्वर से यति श्री ने कहा- कि तुम आचार्य हेमविमलसूरिजी के साधुओं को समाप्त कर दो / मन्त्र शक्ति से बन्धे हुए देव ने तथास्तु कहा और चला गया / दूसरे ही दिन काले-गोरे भैरव ने यति की आज्ञा का पालन करने के लिए आचार्य श्री हेमविमलसूरिजी महाराज के विशाल साधु समुदाय में से एक साधु के शरीर में प्रवेश किया / प्रेत योनी का प्रवेश होते ही वह साधु सारा दिन चारों .36