Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ समाधान करेंगे ? गुरुदेव ने स्वीकृति देते हुए मधुर भाषा से कहा- माणेक ! . अपने मनोगत भाव स्पष्ट रूप से कहो / गुरुदेव ! क्या मूर्ति पूजा शास्त्र सम्मत है ? क्या शास्त्रों में इसका कहीं पर वर्णन है ? गुरुदेव ने उसके प्रश्न का समाधान करते हुए कहा- हाँ भगवती सूत्र में, जीवाभिगम, रायपसेणी जैसे महान आगम ग्रन्थों में परमात्मा की पूजा का विधान स्पष्ट और विशद् वर्णन सहित है / इतना ही नहीं हजारों, लाखों और असंख्य वर्ष पुरानी प्रतिमाएँ आज भी प्राप्त हो रही हैं / हे माणेक ! यदि मूर्ति पूजा शास्त्र विरुद्ध होती तो इतने दीर्घकाल तक क्या चल सकती थी ? भव भीरू और गीतार्थ आचार्य भगवन्त इसकी प्ररूपणा क्यों करते ? अतः मूर्ति पूजा आज की नहीं, जब से तीर्थंकर हुए हैं तभी से मूर्ति भी हैं / ऐसी अनेक दलीलें, तर्क और शास्त्र पाठ देकर आचार्य भगवन्त ने माणेक शा के मिथ्यात्व के मल को धो दिया / अब माणेक शा का हृदय पुनः सम्यग् दर्शन के दीपक से देदीप्यमान हो गया / माणेक शा की श्रद्धा दृढ़ हो गई / निर्मल श्रद्धा के प्रगटीकरण स्वरूप उसने पुनः जिन पूजा प्रारम्भ कर दी, देव-गुरु की उपासना करने लगा / इतना ही नहीं, महासुदी पंचमी के मंगल दिन उसने श्रावक के 12 व्रतों को भी स्वीकार लिया / माणेक के जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन देखकर माता और पत्नी के मुख पर खुशी के चार-चार चाँद चमकने लगे / गुरुदेव के महान उपकार के प्रति उनका हृदय बारम्बार कृतज्ञता भाव से नमन करने लगा / गुरु के संग से माणेक के जीवन का रंग बदल गया / अब वे सभी पहले की भाँति देव-गुरुधर्म की उपासना में मन-वचन-काया की दृढ़ता से तत्पर हो गए और धर्मकर्म द्वारा जीवन व्यतीत करने लगे | उज्जैनी में थोड़े दिनों की स्थिरता करके आचार्य श्री हेमविमलसूरीश्वरजी ने अन्यत्र विहार कर दिया / एक दिन माणेक शा व्यापार हेतु आगरा गया / इसके जीवन की एक 32