Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ काऊसग्ग मुद्रा में अडोल तथा स्थिर खड़े रहे / एक रोम भी उनका हिला नहीं। यह देख माणेक शा एकदम स्तब्ध रह गया / उसने तुरन्त दाढ़ी से अड़ी हुई लकड़ी को खींच लिया और जलती हुई दाढ़ी को बुझा दिया / अग्नि परीक्षा के पलों में भी मन-वचन की दृढ़ता तथा स्थिरता ने सेठ को विचार करने के लिए मजबूर कर दिया / इतना ही नहीं इस घटना ने सेठ माणेक शा के हृदय में जोरदार व्याकुलता उत्पन्न कर दी / वह पश्चात्ताप की पावक में जलने लगा | ओह ! मैंने कैसा अधम कृत्य कर दिया / मुनियों को साता देने के बदले मैंने घोर असाता पहुँचा दी / मैंने अति निर्लज्ज कार्य कर दिया / न मालूम अब मैं कौन से भव में इस पाप से छुटकारा पाऊँगा। मैने प्रवचनों में कितनी बार सुना कि-'तीर्थ भूता हि साधवः' अर्थात् साधु महाराज तो तीर्थ के समान होते हैं वे स्वयं ही तिरते हैं और दूसरों को भी तारते हैं / आज मैंने तीर्थ समान गुरु की आशातना कर घोर पाप कर्मों का बन्धन कर लिया है / पश्चात्ताप की अग्नि में जलता हुआ माणेक शा वहाँ एक क्षण भी खड़ा न रह कर सीधा अपने घर की तरफ भागा और चुपचाप बिस्तर पर जाकर लेट गया / नींद नहीं आ रही थी / इधर-उधर करवटें बदल कर रात्रि व्यतीत की / इसी बीच मन ही मन निश्चय किया कि कल प्रातः सकल संघ के साथ गुरुदेव को अपने घर लेकर आऊँगा और सकल संघ के समक्ष मैंने की हुई गुरु की आशातना का प्रायश्चित्त लूँगा / (पाप और पश्चात्ताप के द्वन्द्व में) पाप हो जाना आसान है परन्तु पाप करने के बाद उसे स्वीकार करना और पश्चात्ताप करना यह महा कठिन है / पाप करने से जितने कर्मों का बन्धन होता है उससे अधिक कर्म तीव्र पश्चात्ताप से नष्ट हो जाते हैं। प्रातःकाल हुआ, आज माणेक शा जल्दी उठ गया, शीघ्र ही स्नानादि से निवृत्त होकर तैयार हो गया / यह सब देख पत्नी भी आश्चर्य चकित हो गई / उसके आश्चर्य को तोड़ते हुए माणेक ने कहा- आनन्द ! आज तू प्रसन्न हो क्योंकि आज गुरुदेव के पगले मुझे अपने घर पर कराने हैं / 29