Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ माँ जिनप्रिया अपनी पुत्रवधू को अश्रुभरे नेत्रों से देखती रह गई। एक दिन आनन्दरति ने विचार किया कि यदि मैं माता के छः विगई के त्याग की बात अपने पति को करूँ तो शायद उनके जीवन में परिवर्तन आ जाए क्योंकि वे मातृभक्त हैं, हो सकता है कि वे पुनः धर्म मार्ग में स्थिर हो जाएँ / एक दिन अवसर देखकर पत्नी ने माँ के त्याग की सारी बात पति के सामने कर ही दी / जिसे सुनकर माणेक शा का मन अत्यधिक व्यथित हो गया / सोचने लगा माताजी मेरे निमित्त अपनी काया पर इतना जुल्म क्यों कर रही हैं / इसी चिन्तन और वेदना से उसकी आँखें आँसुओं से भर गई / मस्तक लज्जा से नीचे झुक गया / फिर भी साहस करके माँ के पास आया और बोला- माताजी ! साधुओं के परिचय में मुझे इतना विश्वास तो हो गया है कि मोक्ष मार्ग की साधना में और सिद्धि पद की प्राप्ति में मूर्ति पूजा अनिवार्य नहीं है | आगमों में भी मूर्ति पूजा का उल्लेख नहीं है। ___ माणेक शा कुछ आगे बोले कि उससे पहले ही माँ जिनप्रिया ने कहाबेटा ! आगम और शास्त्र तो मैंने पढ़े नहीं हैं परन्तु इतना तो मैं भी जानती हूँ कि मानव के आचार और विचारों की शुद्धि के लिए मूर्ति पूजा अनिवार्य है इस विषमकाल में जिनबिम्ब जिनालय, जिनागम यही तरने के साधन हैं / माता के विविध प्रकार से समझाने पर भी माणेक के मस्तिष्क में कोई बात नहीं उतरी / समय वर्ते सावधान... इस न्याय को समझ कर माता ने मौन धारण कर लिया / समय व्यतीत हो रहा था, एक दिन उज्जैनी के आँगन में सोने का सूरज उदय हुआ, क्षिप्रा नदी का प्रवाह आज गति नहीं मानो नृत्य कर रहा हो, जैन श्रावकों के घर-घर में आज आनन्द का अवसर आ रहा था / कारण कि तपागच्छ की 55 वें पाट पर शोभायमान आचार्यश्री हेमविमलसूरीश्वरजी आज उज्जैनी नगरी में पधार रहे थे / श्री हेमविमलसूरिजी अर्थात् आनन्दविमलसूरिजी के गुरु और माणेक शा के कुलगुरु / श्री हेमविमलसूरिजी भीष्म तपस्वी थे / इन्होंने 500 मुमुक्षु आत्माओं को 26