Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ माणेक शा का नाम और काम समस्त मालव प्रदेश में इतना प्रसारित हो गया कि बड़े-बड़े श्रीमन्त अपनी पुत्री की शादी उसके साथ करने के लिए उत्सुक हो गए / अन्त में धारा नगरी के अत्यन्त श्रीमन्त श्रेष्ठी की पुत्री आनन्दरति के साथ माणेक शा का विवाह हो गया / आनन्दरति इतनी गुणवान थी कि ससुराल आकर विनयादि गुणों से उसने माँ जिनप्रिया के हृदय को जीत लिया, निःस्वार्थ प्रेम भाव से पति को वश में किया / दोनों के विचारों में अभूतपूर्व समन्वय था / दोनों ही वीतराग देव को मानते थे, दोनों ही तपागच्छीय आचार्य श्री हेमविमलसूरिजी तथा श्री आनन्दविमलसूरिजी को गुरु रूप में मानते थे / दोनों को प्रभु पूजा, गुरु सेवा तथा मातृ भक्ति में खूब आनन्द आता था / दोनों का तन अलग था मन एक ही था / माता जिनप्रिया का हृदय भी ऐसी पुत्रवधू को प्राप्त करके फूला नहीं समाता था / ___ आज के युग में ऐसी पति-पत्नी की जोड़ी मिलनी बहुत मुश्किल है / आज तो पति को तप करना अच्छा लगे तो पत्नी को होटल में जाना, पति को प्रतिकमण की इच्छा हो तो पत्नी को पिक्चर जाने की, पति को तीर्थ स्थान जाने की भावना हो तो पत्नी को हिलस्टेशन घूमने की इच्छा होती है / पत्नी पूर्व में तो पति पश्चिम में जाता है / तभी तो एक कवि ने लिखा है कि.. मैं पूर्व को जाता हूँ तो वह पश्चिम को पाँव उठाती है / मैं आम जिसे कहता हूँ वह नीम उसे बतलाती है / पैरों की जूती पगड़ी पर अपना अधिकार जमाना चाहती है / अर्धांगिनी काहे को सर्वांगिनी बनना चाहती है | यदि पुत्रवधू अपने ससुराल को स्वर्ग बनाना चाहती है तो उसे पति से पहले अपने विनयादि गुणों के द्वारा अपनी सासु की प्रियपात्र बनना चाहिए / __ आनन्दरति ने अपने गुणों के द्वारा सभी के मान, पान और सम्मान को प्राप्त कर लिया / तीनों का संसारी जीवन निर्विघ्न चल रहा था सभी 21