Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ देव-गुरु-धर्म की उपासना एवं आराधना में अपना जीवन सुखमय व्यतीत कर, रहे थे / स्वप्न में भी जिसकी कल्पना नहीं कर सकते ऐसी ही एक घटना एक दिन माणेक शा के जीवन में विकम संवत 1563 में घटित हो गई / समय-समय पर उज्जैनी नगरी में पधारने वाले गुरुदेव श्री हेमविमलसूरीश्वरजी अन्यत्र विहार कर गए / यह अवसर देखकर लोंकागच्छ के आचार्य श्री पद्मनाभसूरिजी ने उज्जैनी में प्रवेश किया / उज्जैनी के मध्य भाग में एक विशाल उपाश्रय में उन्होंने स्थिरता की / "लोंकागच्छ के यतियों की मुख्य मान्यता थी कि प्रतिमा की पूजा नहीं करनी, प्रतिमा में परमात्मा की स्थापना एक बनावट है / वास्तव में पूज्य, आराध य, उपास्य यदि कोई तत्व है तो अपनी आत्मा है | पत्थर पूजा में पृथ्वी, जल, पुष्प में जीवों की विराधना होती है / ' लोंकागच्छ के आचार्य पद्मनाभसूरि ने प्रतिदिन प्रवचनों में ऐसी बातों का कहना चालू कर दिया / उनकी वाक्छटा तथा प्रवचन शैली ऐसी थी कि प्रतिदिन श्रोताओं की संख्या बढ़ने लगी / बढ़ती संख्या को देखकर उत्सूत्र प्ररूपणा करनी शुरू कर दी / चारों तरफ उनके प्रवचनों की चर्चा होने लगी / माणेक शा के कानों में भी यह चर्चा पहुँची / एक दिन कूतूहलवश वह भी उनके प्रवचन सुनने चला गया / उनकी वाक्पटुता से आकर्षित होकर वह भी उनका प्रतिदिन का श्रोता बन गया / यतियों की चकोर दृष्टि से वह छिपा न रहा / माणेक शा जैसे उज्जैनी के अग्रगण्य श्रेष्ठी पर अपने विचारों की असर होती देखकर आचार्य के आनन्द का पार न रहा / सूरिजी की वाक् धारा के प्रवाह में माणेक शा का कुलाचार धर्म भी प्रवाहित हो गया / किसी ने ठीक ही कहा है कि एक ही एक झूठ आप छः बार सुनो तो सातमी बार वह आपके लिए सत्य ही बन जाएगा / प्रतिदिन प्रतिमा और पूजा 22