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[१०] भान पड़ती है। परन्तु वैसे, अंथ की पद्य संख्या २०४६ है और वाक्री का उसमें मंत्र भाग है जो १५० या ६०० श्लोकों के करीब होगा । कुछ अपवादों को छोड़ कर, यह सारा मंत्र माग प्रमूरित्रिवर्णाचार से उठाकर-व्यों का त्यों अपवा कहीं कहीं कुछ बदलकररक्खा गया है। रही पद्यों की बात, उनका जहाँ तक मुकाबला किया गया उससे मालूम हुआ कि इस अन्य में .६६ पप तो ऐसे है जो प्राय: ज्यों के त्यों और १७७ पब ऐसे हैं जो कुछ परिवर्तन के साथ ब्रह्मसूरि त्रिवर्णाचार से उठा पर रक्खे गये हैं। इस तरह पर अंथ का कोई एकतिहाई माग ब्रह्मसूरि त्रिवर्णाचार से लिया गया है
और उसे बाहिर में अपनी रचना प्रकट किया गया है । इस अन्य संग्रह के कुछ नमूने इस प्रकार हैं:
(क) ज्यों के त्यों उठाकर रक्खे हुए पथ । सुख पांचम्ति सर्वेऽपि जीवा दुख न जावित् । वस्मात्सुपिणो जीवा संस्कारागामिसम्मताः ॥२-७॥ एवं वशाहपर्यन्तमेतत्कर्म विधीयते। पिंड तिलोदकं चापि कर्चा दद्याचदान्वहम् ।। १३-९७६ ॥
इन पचों में से पहला पथ ब्रह्मसूरि-त्रिवर्णाचार का ५याँ और दूसरा पथ उसके अन्तिम पर्व का १३९ वा पर है । दूसरे पद्य के भाग पीछे के और भी पचासों पर ब्रह्मसूरि-त्रिवर्णाचार से ज्यों के त्यों उठाकर रखे गये हैं। दोनों प्रन्यों के अन्तिम भाग (अध्याय तथा पर्व ) सूतक प्रेतक अथवा जननाशोच और मृताशीच नामके प्रायः एक ही विषय को लिये हुए भी है। .
(ख)परिवर्तन करके रक्खे हुए पद्य । । कालादिग्धितः पुंसामन्तशुचिः प्रजायते।
मुख्यापेक्षा संस्कारो पाखामपेक्षते ।।