Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
अथर्वन
प्राचीन चरित्रकोश
अदीन
यह ब्रह्मदेव का ज्येष्ठ पुत्र । यज्ञ नामक इन्द्र इसका | वेदों में उसे विष्णु की पत्नी कहा गया है (वा. स. २९. सहाध्यायी था। इन दोनों को ब्रह्मदेव से ब्रह्मविद्या प्राप्त | ६०; तै. सं. ७.५.१४) । अदिति, अब तथा पृथ्वी से देवता हुई (मुं. उ. १. १.१-२)।
उत्पन्न हुए (ऋ. १०.६३.२)। अदिति की द्यौ तथा पृथ्वी यह स्वायंभुव मन्वन्तर का ऋषि था। यह ब्रह्मदेव का | से एकरूप कल्पना की गई है (ऋ. १.७२,९; अ. वे.१३. मानसपुत्र था। इसे कर्दमकन्या शांति तथा चित्ति नामक दो १.३८)। तथापि कई स्थानों पर द्यावापृथिवी की अपेक्षा पत्नियाँ थीं (भा. ४.१; १०.७४. ९.)। इसे सुरूपा | इसका पृथक् उल्लेख किया गया हैं ( ऋ.१०.६३.१०)। मारीची, स्वराट् कादमी तथा पथ्या मानवी ये तीन | एक स्थान पर अदिति विश्वसृष्टि की मूर्ति दिखाई देती पत्नियाँ थीं (ब्रह्माण्ड. ३.१. १०२-१०३; वायु. ६५. है (ऋ. १.८९.१०)। अदिति, आदित्य की माता, ९८)। परंतु सुरूपा मारीची, अंगिरस् की पत्नी मानी | अतएव तेज प्राप्त करने के लिये उसकी प्रार्थना की गयी गई है (मत्स्य. १९६.२)। धृतव्रत, दध्यच् तथा अथर्व- है (ऋ. ४.२५.३ १०.३६.३)। उसके तेज का गौरव शिरस् इसके पुत्र हैं। इन्हें आथर्वण कहते हैं। किया गया है। ऋग्वेद तथा अगले ग्रंथों में अदिति को __ यह युधिष्ठिर के यज्ञ में ऋत्विज था (भा. १०.७४. | गो कहा गया है (ऋ. ७.८२.१०)। उषा को अदितिमुख ९)। अंगिरस कुल का प्रथम कह कर, इसका उल्लेख | कहा है (ऋ. १.१५.३; ८.९०.१५:१०.११.१; वा. सं. किया गया है तथा अथर्ववेद से इसका संबंध है, ऐसा १३.४३:४९)। संस्कार की गाय को सामान्यतः अदिति उल्लेख अथर्ववेद में पाया जाता है (म. उ. १८.७-८; | कहा जाता है। भूलोक के सोम की तुलना - अदिति के मुं. उ. १.१.१-२, वायु. ७४, ब्रह्माण्ड. ३.६५.१२, ह. ध से की गई हैं (ऋ. १.९६.१५)। अदिति की नप्ती वं. १.२५)। इसकी माँ का नाम सती था (भा. ६.६. | (कन्या) दूध को ही माना गया होगा। वह पात्र में १९)। इसने समुद्र से अग्मि बाहर निकाला (म. | गिरते हुए सोम के साथ एकजीव होती है (ऋ. ९.६९. व. २१२.१८)। नहुष, इन्द्रपद से भ्रष्ट होने के पश्चात् | ३)। पहला इन्द्र सिंहासन पर बैठा । तब अंगिरा ने आ कर यह प्राचेतस दक्ष प्रजापति तथा आसिक्नी की कन्या अथर्ववेदमंत्रों से इन्द्र का सत्कार किया। तब इन्द्र ने
| तथा कश्यप प्रजापति की पत्नी थी। इससे पता चलता है इसे वरदान दिया कि, 'तुम्हारे वेद का नाम अथर्वांगि
वद का नाम अथवााग- कि, ऋग्वेद के एक सूक्त की द्रष्टी अदिति दाक्षायणी यही रस होगा, तुम्हें भी लोग अथवागिरस कहेंगे तथा तुम्हें होगी ( १०.७२)। मैनाक पर्वत के मध्य में स्थित यज्ञभाग भी मिलेगा'(म. उ.१८.५-८; पणि देखिये)|| विनशन नामक तीर्थ पर अदिति ने चरु पकाया था (मा अथर्वशिरस-यह अथर्वन् का पुत्र था (अथर्वन्
व. १३५.३)। देवयुग में तीनों लोकों पर देवताओं का देखिये)।
स्वामित्व था। उस समय इसने पुत्रप्राप्त्यर्थ सतत एक अथवौगिरस् -अंगिरस को इन्द्र द्वारा दी गई संज्ञा ।
पैर पर खडे हो कर अति कठिन तपश्चर्या की। उससे अथर्वन् तथा अथर्ववेद की संज्ञा (तै. बा. ३.१२.८.२;
विष्णु उत्पन्न हुआ (म. अनु. ९३)। विष्णु के पहले श. वा. ११.५.६.७ मैन्यु. ६.३३; छां. उ. ३.४.१-२;
इसे ग्यारह पुत्र हुए थे। विष्णु को मिला कर कुल बारह प्र. उ. २.८)। अथर्ववेद शब्द सूत्र में आया है (को.
पुत्र हुए (कश्यप देखिये)। तैत्तिरीय संहिता में कहा सू. ३.१९)।
गया है कि, इसे आठ ही पुत्र हुए । इसे सात की कामना __ अथौजस-वैशाखमास के सूर्य के साथ रहनेवाला | थी अतएव आठवा गर्भ इसने फोड़ दिया। केवल सात यक्ष (भा. १२. ११.३४)।
पुत्र ले कर यह देवताओं के पास गई। आठवाँ माण्ड अदारि-सुरारि देखिये।
अथवा विवस्वान् का इसने त्याग किया। ये आठ पुत्र ही अदिति-मित्रावरुणों की (ऋ. ८.२५. ३, १०३. अष्ट वसु हैं। भूमिपुत्र नरकासुर ने अदिति के कुंडलों का ८३) तथा अर्थमा की (ऋ. ८.४.७९) माता । इसीसे | हरण किया तथा वह प्राग्ज्यातिष नगर म
| हरण किया तथा वह प्राग्ज्योतिष नगर में जा कर रहने स्वाभाविकतः इसे राजमाता कहा जाता है (ऋ. २.२७. लगा। आगे चल कर कृष्ण उन्हें जीत लाया तथा अदिति ७)। इसके आठ पुत्र हैं तथा वे अत्यंत बलवान् हैं को उसने वे कुंडल दिये (म. उ. ४७)। (ऋ. १०.७२.८; ३.४.११, ८.५६.११)। पौराणिक अदीन-(सो. क्षत्र.) सहदेव का पुत्र । इसका कथाओं में अदिति, दक्षकन्या तथा कश्यप पत्नी है। परंतु | पुत्र जयत्सेन।
१८