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ग्रहण करने पर उस कच्चे जल का पानी और सवित्त (सजाव' हरी) बनस्पति खाने का त्याग कर देते हैं।
जो जल सचित है वह गर्म कर लेने पर ४ पहर तक अचित्त रहता है और प्रौटा हुमा (खोला हुमा) जल ८ पहर (२४ घंटे) तक अचित्त रहता है । छने हुये जल में बारीक राख या पिसी हुई लौंग, इलायचो, मिर्च आदि चाजें मिलाकर जल का रस, रूप, गन्ध बदल लेने पर दो पहर (छह घंटे तक जल अचित्त (जल कायिक जीव रहित) रहता है, तदनन्तर सचित्त हो जाता है।
शाक फल आदि सचित्त (हरित) वनस्पति सूख जाने पर या अग्नि से पक जाने प्रादि के बाद प्रचित (प्रासुक-वनस्पति काय रहित) हो जाती है।
इस प्रकार पाँचवीं प्रतिमाधारी को अचित्त जल पीना चाहिये तथा चित्त बनस्पति खानी चाहिये । जोभ की लोलपता हटाने तथा जीव-रक्षा की दृष्टि से पांचवीं प्रतिमा का आचरण है।
रात्रि भोजन त्याग खाद्य (रोटी, दाल आदि भोजन), स्वाद्य (मिठाई श्रादि स्वादिष्ट वस्तु) लेह्य (रबड़ी, चटनी आदि चाटने योग्य चीजें) पेय (दूध, पानी, शर्बत प्रादि पीने की चीज), इन चारों प्रकार के पदार्थों का रात्रि के समय कृत, कारित, अनुमोदना से त्याग करना रानि भोजन त्याग प्रतिमा है।
सर्यास्त से सूर्योदय तक रात में भोजन पान न स्वयं करना, न किसी दूसरे को भोजन कराना पीर न रात में भोजन करने वाले को उत्साहित करना, सराहना करना, अच्छा समझना इस प्रतिमाधारी का प्राचरण है। यदि अपना छोटा पुत्र भूख से रोता रहे तो भी यह प्रतिमाधारो व्यक्ति न उसको स्वयं भोजन करावेगा, न किसो को उसे खिलाने को प्रेरणा करेगा या न कहेगा।
ब्रह्मचर्य प्रतिमा काम सेवन को तीन राग का, मन की अशुद्धता का तथा महान् हिंसा का कारण समझकर अपनी पत्नी से भी मैथुन सेवन का त्याग कर देना ब्रह्मचर्य नामक सातवीं प्रतिमा है। इस प्रतिमा का धारक नैष्ठिक ब्रह्मचारी कहलाता है।
नौ बाड़ जैसे खेत में उगे हुये धान्य आदि पशुत्रों से खाने-बिगाड़ने से बचाने के लिये खेत के चारों ओर काँटों की बाड़ लगा दी जाती है उसी प्रकार ब्रह्मचारी को ब्रह्मचर्य सुरक्षित रखने के लिये निम्नलिखित ६ नियमों का पाचरण करना आवश्यक है, इनको ब्रह्मचर्य को सुरक्षा करने के कारण बाड़ कहते हैं।
१. स्त्रियों के स्थान में रहने का त्याग । २. राग भाव से स्त्रियों के देखने का त्याग। ३. स्त्रियों के साथ पाकर्षक मीठी बातचीत करने का त्याग । ४. पहले भोगे हुये विषय भोगों के स्मरण करने का त्याग । ५. काम-उद्दीपक गरिष्ठ भोजन न करना। ६. अपने शरीर का शृगार करके आकर्षक बनाने का त्याग। ७. स्त्रियों के बिस्तर, चारपाई, प्रासन आदि का त्याग । ८. काम कथा करने का त्याग । १. भोजन थोड़ा सादा करना जिससे काम जागत न हो। इस प्रतिमा के धारी को सादा वस्त्र पहनने चाहिए । वह घर में रहता हुमा व्यापार आदि कर सकता है।
प्रारम्भ त्याग सब प्रकार के प्रारम्भ का त्याग कर देना प्रारम्भ त्याम नामक पाठवी प्रतिमा है।
आरम्भ के दो भेद हैं-१-घर सम्बन्धी, (चक्की, चूल्हा, अोखली, बुहारी और परीड़ा यानी पानी का कार्य) २-व्यापार सम्बन्धी । जैसे दुकान, कारखाना, खेती आदिक कार्य।
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