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आप वीतराग हो जाओगे। द्वेष कॉज़ है और राग परिणाम है। वह किस तरह ? खुद की पत्नी पर यदि ज़रा सा भी द्वेष न हो तो उसके प्रति राग होगा ही नहीं! द्वेष के रिएक्शन में राग होता है। द्वेष का ही फाउन्डेशन है। दादा का ज्ञान मिलने के बाद द्वेष चला जाता है। उसके बाद चीज़ों के प्रति आकर्षण रहता है लेकिन वह नाटकीय, उसके बाद वीतराग बनता है लेकिन बहुत समय बाद!
जंगल में खूब भूख लगे तब अकुलाहट होती है। उस अकुलाहट में द्वेष होता है, राग नहीं होता। सोना, हीरा वगैरह दिखाया जाए तो भी द्वेष होता है।
खूब भूख लगने पर इंसान को राग होता है या द्वेष? द्वेष। पाँच इन्द्रियों की बिगिनिंग द्वेष का कारण है। तो फिर राग कब होता है ? रोटी हो और पराठा हो तो वह पराठा पसंद करता है। इसका मतलब उस पर राग है और उसका भोजन कोई ले ले तो द्वेष होता है। इस प्रकार द्वेष में से राग और राग में से द्वेष चलता ही रहता है, लेकिन मूल में द्वेष है।
अक्रम में वीतद्वेष हुआ अर्थात् उससे पहले ममता तो चली ही गई।
क्रोध-मान-माया-लोभ, वे चारों ही कषाय द्वेष हैं। कषाय अर्थात् जो व्यवहार आत्मा को पीड़ा दे। कुल मिलाकर ये सभी द्वेष हैं। लेकिन शास्त्रों में (राग-द्वेष) सिर्फ दो ही बताए गए हैं।
अक्रम में तो समभाव से निकाल करने को कहा गया है। अत: जो कुछ भी आए उसमें राग-द्वेष नहीं लेकिन निकाल करना है।
भूख लगे, प्यास लगे, विषय से संबंधित भूख लगे, देह से संबंधित भूख लगे, वह द्वेष का कारण है। वह सब नहीं होगा तो वीतराग हो जाएगा!
जिसने पिछले जन्म में ब्रह्मचर्य का भाव किया हो, उसे इस जन्म में उसका उदय आता है। उस उदय के बाद उसे विषय की भूख नहीं लगती।
भूख
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