Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे -इति, आचाराङ्गस्य पञ्चमाध्ययनमारम्भे 'आवंती केयावंती' इत्यालापको वर्तते, अत इदमध्ययनम्-'आवंती' इत्युच्यते। 'चाउरंगि' इति, उत्तराध्ययनस्थ तृतीयाध्ययनपारम्भे-'चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जंतुणो' इत्युक्तम्, तत्रस्थं पदद्वयमादायेदमध्ययनं 'चाउरंगिज्ज' इत्युच्यते । 'असंखय' इति, उत्तराध्ययनस्य चतुर्थाध्ययनमारम्भे 'असंखयं जीवियं मा पमायए' इत्यस्ति, तत्स्थम् 'असंखयं' इत्युच्यते । 'अहातथिज्ज' इति, मूत्रकृताङ्गस्य त्रयोदशाऽध्ययनमारम्भे-'जह सुत्तं तह अत्थो' इति वर्तते, तत्स्थं 'जह तह' इति पदद्वयमुपादायेदमध्यनम्'अहातथिज्जं' इत्युच्यने । 'अदइज्ज' इति, मुत्रकृताङ्गस्य द्वितीयश्रुतस्कन्धस्यहोता है, वह 'आदान पद' है । इस पद से जो नाम निष्पन्न होता है, वह आदान निष्पन्न नाम है। वह इस प्रकार से है-आवन्ती-आचाराङ्ग के पांचवें अध्ययन के प्रारम्भ में “आवंती केयावंती" ऐसा आलापक है। इसलिये आवन्ती पद को लेकर इस अध्ययन का नाम "आवंती" ऐसा हुआ है। उत्तराध्ययन के तृतीय अध्ययन के प्रारम्भ में "चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जंतुणो) ऐसा कहा है , सो वहां के पदद्वय को लेकर इस अध्ययन का नाम " चाउरंगिज्ज" ऐसा हुआ है। उत्तराध्ययन के चतुर्थ अध्ययन के प्रारम्भ में " असंखयं जीवीयं मा पमायए" ऐसा कहा है, सो " असंखयं" इस पद को लेकर अध्ययन का नाम " असंखयं " ऐसा हो गया है। सूत्र कला के १३ वें अध्ययन के प्रारम्भ “में जहसुत्तं तह अत्थो" ऐसा कहा है, सो वहां के "जह तह" इन दो पदों को लेकर "जह तह" ऐसा उस अध्ययन આ પદથી જે નામ નિષ્પન્ન થાય છે. તે આ નિષ્પન્ન નામ उपाय छ, ते मा प्रमाणे छ-माता-मायारांगना पांयमा मध्याયના પ્રારંભમાં “આવંતી કે યાવંતી” આલાપક છે માટે આવંતી પદથી લઈને આ અધ્યયનનું નામ “આવંતી” એવું રાખવામાં આવ્યું છેઉત્તરાध्ययनना श्रीan अध्यायन प्रारममा “चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीहजंतुणो" આમ કહેવામાં આવ્યું છે તે ત્યાંના પદયના આધારે આ અધ્યયનનું નામ " चाउरंगिज" वामां माथ्यु छे उत्त२.ध्ययनना यतु अध्ययनना प्रार ममा “असंखयं जीवीयं मा पमायए " आम ४ाम भाव्यु छ त। " असंखयं" भा पहने दीधे अध्ययन नाम “असंखयं" से 5 युछे. सूत्रतांना तरमा मध्ययनना प्रारममा "जहसुत्तं तह अत्थो” माम अहवामां मायूछे, तो त्यांना “ जहतह" मा में होने दीधे “ जहतह"
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