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अनेकान्त
[वष १४
इस वर्ष जून मासमें वीर सेवामन्दिरको कार्य-कारिणीकी कार्तिक (नवम्बर) मासकी तीसरी-चौथी किरण संयुक्त बैठकहां और उसमें वोर शासनजयन्तीसे अनेकान्तके पुनः रूपसे प्रकाशित करनेका निश्चय किया गया है, जिससे प्रकाशनका निश्चय किया गया। समाचार पत्रों में इसकी प्रकाशनमें जो विलम्बजन्य गरबड़ी उत्पन्न हो गई है, उसे सूचना भी कर दी गई और मैटर प्रेसमें दे दिया गया।
असम व दिया गया। दूर किया जा सके। परन्तु बार बार लिखापढ़ी करने पर भी पोस्ट मास्टर जनरल
टर जनरल अनेकान्तकी भावी रूप-रेखा तो वीरसेवा-मन्दिरके के आफिससे रजिस्ट्रेशन नम्बर नहीं प्राप्त हो सका और इस
___ उद्देशानुसार यथापूर्व ही रहेगी, किन्तु पत्रको ऊँचा उठाने प्रकार पत्र तैयार होने परभी वीर शासनजयन्ती पर सूचनाके
यानेका ममचित प्रयत्न किया जा रहा है। अनुसार पाठकोंकी सेवामें 1वें वर्षकी प्रथम किरण नहीं
उपके लिये पाठकों और लेखक महानुभावोंका उचित भेजी जा सकी।
सहयोग प्राप्त करनेका पूरा प्रयत्न किया जायगा । पोस्ट मास्टर जनरलके यहाँ से रजिस्ट्रेशन नम्बर चालू वर्षकी इस प्रथम किरण यह विशेष योजना प्रारम्भ सितम्बरके दूसरे सप्ताहके मध्य में प्राप्त हा। साथ ही की गई है कि अनेकान्तकी प्रत्येक किरणके अन्तमें एक पत्रके प्रकाशनको तारीख १५ सितम्बरको स्वीकृत होनेकी फार्मका मैटर प्रशस्ति-संग्रहका रहे। वीरसेवा-मन्दिरके सूचना मिली। उस वक्त पयूषण पर्वका समय होनेसे तत्वावधानमें अभी तक जितने ग्रन्थोंको प्रशस्तियाँ संगृहीत श्री मुख्तार साहब भी व्यावर गए हुए थे और मैं भी की गई हैं, उनमेंसे बहुत सी प्रशस्तियोंका एक संग्रह तो स्थानीय पर्युषण पर्वके प्रोग्राममें व्यस्त था। फलस्वरूप वीरसेवा-मन्दिर ग्रन्थमालासे प्रकाशित हो चुका है। अगस्त माम वाली पहली किरणको १५ सितम्बरको भी अवशिष्ट अपभ्रंश आदिके अन्योंकी प्रशस्तियोंके प्रकाशनार्थ पाठकोंकी सेवामें नहीं भेजी जा सकी। अब श्रावण उक्त व्यवस्था की गई है। इस योजनासे पाठकोंको कसनी (अगस्त) और भाद्रपद (सितम्बर) मासकी दोनों ही नवीन बातोंकी जानकारी प्राप्त होगी और इस प्रकार किरण एक माथ १५ अक्टूबरको रवाना की जा रही हैं। उनके पास महज में ही एक 'प्रशस्ति-संग्रह' हो जायगा। इस अव्यवस्थाके कारण ही अश्विन (अक्टूबर और
-परमानन्द जैन
अनेकान्तके ग्राहकोंसे निवेदन
अनेकान्तके ग्राहकोंसे निवेदन है कि वे अनेकान्तको प्रतिवर्ष होने वाले घाटेसे मुक्त करनेके लिये अपना सहयोग प्रदान करनेकी कृपा करें। सहयोगके प्रकार निम्न हैं:) वीर सेवामन्दिरके स्थायी सदस्य बनिये, या अनेकान्तके संरक्षक तथा सहायक स्वयं बनिये और दूसरों को बनाइये । (२) स्वयं अनेकान्तके ग्राहक बनिये और और दूसरोंको बनानेकी प्रेरणा कीजिये। (३) विवाह-शादी आदि दानके अवसरों पर अनेकान्तको अच्छी सहायता भिजवाइये। (४) अपनी श्रोरसे अनेकान्त भेंट स्वरूप कालेजों, लाइब्रेरियों, सभा, सोसाइटियों और जैन अजैन विद्वानोंको
भिजावाइये। (५ अनेकान्तके ग्राहकोंको अच्छे ग्रन्थ उपहारमें स्वयं दीजिये और दिलाइये। (६) लोकहितकी साधनामें सहायक अच्छे सुन्दर लेख लिखकर भेजिये तथा चित्रादि सामग्रीको प्रकाशनार्थ भिजवाइये। (७) जैन पुरातत्त्व या प्राचीन हस्तलिखित सचित्र ग्रन्थोंके चित्रोंके फोटो प्रादि मेजिये।
इन सब मार्गासे ग्राहक महानुभाव अनेकान्तकी सहायता कर संचालकोंको निराकुल करनेमें समर्थ हो सकते हैं। और उस समय संचालकगण पत्रको समुन्नत बनाते हए पाठकोंकी विशेष सेवा कर सकेंगे।
प्रकाशक