Book Title: Anekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 408
________________ ३४८] अनेकान्त [वर्ष १४ के नाम से प्रसिद्ध हैं। मूलावार भी इन्ही की कृति है गच्छ को प्राचीन साबित कराया। दूसरे पद्य में कुन्दकन्द ऐसा मूलाचार की अनेको प्रतियों के अन्त मे उल्लिखित देवने उसी गिरनार पर्वत पर अंबिका की मूर्ति से दिगम्बर देखा जाता है । कुन्दकुन्द नाम से अकित एक मूलाचार संप्रदाय को प्राचीन कहलवाया । सारस्वत गच्छ निग्रंथ उपलब्धि भी है । मुद्रित मूलाचार और इस मूलाचार में दिगंबरोंका ही तो सत्यपय है । मालूम पड़ता है पद्मनन्दीसे कुछ गाथा सूत्रों की हीनाधिकता और एकाध अध्यायके आगे कुन्दकुन्द देव को समझ लिया गया है और ऐसा समझ पीछेके सिवा कोई विशेप अन्तर नही है । पूर्ण सभव है कि कर कुन्दकुन्द के साथ उस घटना का सम्बन्ध जोड़ दिया मूलाचार भी कुन्दकुन्ददेवकी ही देन हो । गया है । नाम साम्य से ऐसा हो जाना स्वाभाविक भी है पद्मनन्दी नामके अनेक प्राचार्य हो गये है। तावतार उसी तरह कुन्दकुन्दपुर पर से पद्मनन्दी को भी कुन्दकुन्द नावाचामनाया वहा वे देव समझ लिया जा सकता है । अत. परिकर्म-कर्ता पद्मभगवत्पुप्पदन्त और भगवत् भूतबलिप्रणीत पटव डागमके नन्दा हा कुन्दकुन्द थे यह अभी निर्णयाधीन है । ऐमी प्राद्य त्रिखडो पर बारह हजार श्लोक प्रमाण परिकम प्रन्य भावना है कि कुन्दकुन्द देव पट् खडागम के कर्ताओं से भी के कर्ता कहे गये हैं और कहा गया है कि वे कन्दवन्द पुर पहले हो गये हैं। में हुए थे। इस ग्राम नाम पर से इन्ही पद्मनन्दीको कन्द- ६ छमास्वाति या उमास्वामी-ये भगवत्कृन्दकुन्द कुन्द अनुमानित किया जाता है । प.न्तु यह कोई पुट के उत्तराधिकारी हुए हैं। पट्टावलियों मे निम्न पद्यके प्रमाण हो ऐसा लगता नहीं। सभव है और ही पमनन्दी साथ साथ भगवत्कुन्दकुन्दके अनन्तर इनका नाम पाता है। कुन्दकुन्द नामसे प्रख्यात हुए हों। अतः जब तक और कोई अजमेर पट्टावली में इनकी पट्ट सख्या भी छह दी गई है। पुष्ट हेतु या प्रमाण न मिल जाय, तब तक यह अनुमान वह पद्य यह हैसशयास्पद ही रहेगा। इसी तरह वह एक पद्य भी पटटावनी तत्त्वार्थसूत्रकर्तृत्वप्रकटीकृतसन्मतः ।। में पद्मनन्दी के प्रकरण में लिग्वा हा मिलता है - उमाल्वातिपदाचार्यों मिथ्यात्वतिमिराशुमान् ।।५।। पद्मनन्दिगुरुजीतो बलात्कारगरगाग्रणी। इनका नाम गृध्रपिच्छ भी था. जो कई शिला लेखो मे पापाणघटिता येन वादिता श्रीसरस्वती ।। व्यक्त किया गया है। प्राचार्य वीरसेन और प्राचार्य विद्या नन्दी ने भी इनको इसी नाम से स्मरण किया हैं। अजमेर ऊर्जयन्तगिगै तेन गच्छ (.) सारस्वतो भवेत् मतस्तस्मै मुनीन्द्राय नम श्रीपमनन्दिने । पट्टावली में इनका स्वर्ग समय वि. सं० १०१ लिखा है। इनके तत्त्वार्थसूत्र पर अनेकों छोटी बडी टीकाएं कई ये पद्मनन्दी सकलकीर्ति की परपरा मे हुए है, वे राम भाषामों में पाई जाती है। इन पर से इसका महत्त्व स्वय कीर्ति के पट्टधर थे, रामकीति का समय प्रनिमालेखो के मिा सिद्ध है । कहते है तत्त्वार्थ सूत्र पर स्वामिसमन्तभद्रप्रणीत अनुसार सं० १६७२ है और पद्मनन्दी का ममय इससे आगे ८४००० श्लोकप्रमाण एक गन्धहस्ती भाष्य भी था, जो तथा १७१० के पूर्वतक रहा है । क्योकि सं० १७१० के इस समय उपलब्ध नहीं है। कितने ही जैन ग्रन्यो मे इसके पूर्व किसी समय इनके पट्ट पर देवेन्द्रकीर्ति आ गये थे। नामका उल्लेख मिलता है। अनेक दिग्गज जैनाचार्योंने उमाउक्त पद्य से मिलता जुलता यह एक पद्य कविवर वृन्दावन स्वामी खूब ही प्रशसा की है। इनका तत्त्वार्थसूत्र दिगम्बर जी का भी देखा जाता है और श्वेताम्बर उभय सम्प्रदायो मे परिपूर्णमान्य है। फिर सघ सहित श्रीकुन्दकुन्दगुरु. बदन हेत गये गिरनार, भी वह दिगम्बर सम्प्रदाय मे अधिक मान्य है जबकि श्वेतावाद परयो तह संशयमतिसो माक्षी बदी अविवाकार। भ्वर मम्प्रदाय में उसके कितने ही विषय उन्ही के आगमो सत्यपंथ निरनथ दिगंबर कही सुरी तह प्रकट पुकार। मे विद्ध करार दिये गये हैं। दिगम्बर सप्रदाय मे यह सो गुरुदेव वसो उर मेरे विघ्नहग्न मगलकरतार बात नहीं है । दिगम्बर सम्प्रदाय में तो उसके पाठ करने दोनों पद्यों में विशेष अन्तर नही है। पहले पद्य में का फल एक उपवास बराबर और उसका एक एक अक्षर पद्मनन्दी ने ऊर्जयन्त अर्थात् गिरनार पर्वत पर पाषाण प्रमाणभूत माना गया है। घटित सरस्वती देवीकी मूर्ति को बुलवाया और सारस्वत- ७ लोहाचाय-पट्टावली मे कहा गया है कि उमा

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