Book Title: Anekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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अनेकान्त
[ वर्ष १४ जो अयरबाल-वंसह मयंकु,
बहु विशए पुणु विएणत्तु तेश, विहु-पक्स-सुर सो ऐय वंकु॥
कर आरोप्पविणु शिय-सिरेण ॥ वाटूसाहुहु णंदणु पवीण,
भो रइधू पंडिय गुण-णिहाणु, बिय-जाणिह-लोइय-विणय ली।
पोमावा-वर-वंसह पहागु । जिण-सासणु-भत्तु कसाय-खीणु,
सिरिपाल बम्ह पायरिय सीस, हरसीहु साहु उद्धरिय-दीणु ॥
महु वयणु सुणहि भो बुह-गिरीस ॥ तहो भज्जा गुण-गण-सज्जा द्योचंदही णामें भणिया।
सोढल-णिमित्त णेमिहु पुराणु, मुणिदाण-पियंकर वय-णियमायर णं पवित्ति स्वहो तणिया. विरयड जहं कइ-जण-विहिय-माणु । बीई तिय वील्हाही गुणंग,
तहं रामचरितु वि महु भणेहिं, भासील-विसुद्ध विणाय-गंग ।
लक्षण समेउ इउ मणि मुणहि ॥ जेठिहि एंदणु सिरि करमसीहु,
महु सायराउ तहु मित्त जेण गिह-भारु धुरंधरु बाहु दीहु॥
विएणत्ति मज्मु अवहारि तेण । मुणिसह शिवसह जसु पढम लोह,
महु णामु निहहि चंदहो विमाणि, जा चय-जणाण पूरिय-समीह॥
इय वयगु सुद्ध णिय वित्ति ठाणु ॥ तसु भजा जीणाही पवीणु,
इय णिसुणिवि वयणई, जंपिय सवणइं पंडिएण ता उत्तउ । गुरदेव सत्थ-पय-भत्ति लीण ।
हो हो किं वुत्तर एत्थु प्रजुत्तर हउं गिह कम्में गुत्तउ ॥ ४ ॥ तहु वहणीऽणंतमती पहाण,
घदएण मवइ को उवहि-तोउ, मह-सील-वीण गिह-लद्ध-माण ॥
को फणि-सिर मणि पयडइ विणोउ । चडविह दाणे पोसिष-सुपत्त,
पंचाणण-मुहि को विवह हत्थु, अह-णिसु जिणवर-कम-कमल-भत्त
विणु सुत्त महि को रयइ वन्थु ॥ लहुईहिं पुत्ति रुवें सुतार,
विणु बुद्धिए तह कय्वहं पसारु, णामेण ननो नेहें सुसार ॥
विरएप्पिणु गच्छमि केम पारु । जिण-चरण-कमल गाविय-सरोक,
इय सुणिवि भणई हरसीहु साहु, वय-तरु-णिवाहण-धीरु वीरु ।
पावियड जैग महि धम्म लाहु॥ अण्णा वासरि चिंतियउ तेण,
तुहं कव्वु धुरंधरु दोपहारि, हरसीह णाम इच्छिय सिवेण ॥
मन्थन्ध-कुसलु बहु-विणय-धारि । किं किज्जा वित्त विहिय मम जेण ण दीगु भरिउजह ।
करि कब्बु चिंत परिहरहिं मित्त, कि तेण जि काए' पयरियराए वय-तह जिण ण धरिजइ ॥३
तुह मुहिं शिवमह मरमइ पवित्त ॥ णरभउ पाविव करणीउ एम.
तं वयशु सुणिवि भरिणयउ तेण, भवदहि शिवडणु णो होइ जेम ।
पारद्ध सत्थु पुणु पडिएण। चितिम्वड दसणु णाणु इटु,
तह विहु दुज्जण महु भउ कति, चरणु वि पुणु लोयत्तय-वरिछु ।
धूयह जह दुमणिय भय उर्वति ॥ धम्मु जि दहलक्खणु लोयसारु,
जहं काय-निंद मडयहु सरीरु, सविस्वड एत्थु भवण्णतार ।
सेयंति पेय-वणि लोय भीरु। विष्णु धमें जीड ण सुक्खि थाइ
तह अवगुणु गुणु ते पाव लिंति, तविणु कर चडिड वि मयलु जाह ॥
गिय पयदि सहाउ जि पायडंति ॥ इय चितिवि पुणु गठ साहु तत्थ,
सज्जण अलममि इंड सतुम्ह, अच्छह पंडित जिणगेह जत्थ ।
पाथेव खमेयर दोसु अम्ह।

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