Book Title: Anekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 412
________________ लाला महावीर प्रसादजी ठेकेदारका स्वर्गवास अन्तिम समय ५० हजार का दान देहली जैन समाजके प्रतिष्ठित श्रीमान् ला. महावीरप्रसादजी टेकेदारका ८० वर्षकी वयमें 1 जून, सोमवार सन् १९१७ के मध्यान्हमें स्वर्गवास हो गया । बालाजी का जन्म वैशाख वदी १४० ११३५ में हुआ था। साधारण शिक्षा प्राप्त करनेके बाद सर्व-प्रथम आपने देहली नगरपालिका खजांचीका काम किया। कुछ समयके पश्चात् नौकरी छोड़कर ठेकेदारीका स्वतन्त्र व्यवसाय प्रारम्भ किया और अपने पुरुषार्थ, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा आदि गुणों के द्वारा न्यापारक, सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र में अच्छी उन्नति की । आपने अपने जीवनमें अनेक महान कार्य किये । आप बहुत उदार दानी थे। सन् १९५४ में आपने ५० हजार रुपया निकाल कर महावीर प्रसाद चेरिटेबिल ट्रस्ट कायम किया । तथा अन्तिम समयमें भी करीब ५० हजार दान कर गये हैं। जिमको विगत इस प्रकार है ३००००) महावीरप्रसाद चेरिटेबिल फण्डमें १००.०)अयोध्य में विशालमूर्तिके चबूतरेक निर्माणार्थ २०००) भूवनय अन्धकं प्रथम अध्यायक प्रकारानार्थ १०००) देहली जैन मन्दिरोंको २०००) देहली जैन संस्थाओंको १०००) टी० बोट के रोगियोंकी सहायतार्थ शेष रुपया फुटकर सहायतार्थ आपकी ज्ञानदानमें बहुत रुचि थी। आपने जैन पूजापाठ सग्रह, धर्मध्यान दीपक, रत्नकरण्डश्रावकाचार, पारमानुशासन आदि प्रकाशित कराके बिना मूल्य वितरण किये। भापकी मुनियोंमें परम भक्ति थी। दिल्लीमें मुनियोंके जितने भी चतुर्मास आज तक हुए है, आपने उन सबकी स्व. ला. महावीरप्रसादजी ठेकेदार सर्व प्रकारसे खूब वैयावृत्त्य की और आहारदान देकर महान् पुण्य उपार्जन किया। मा. वीरसागरजीसे जयपुर चतुर्मासमें आपने ब्रह्मचर्य और दूसरी प्रतिमाके व्रत अगीकार किये। गत ३ माससे भाप बीमार थे। अन्तिम समय जिनेन्द्रदेवका स्मरण करते हुए श्राप स्वर्गवासी हो गये। अपने पीछे आप अपनी धर्मपत्नी, ५ पुत्र, पुत्रियां, पोते, परपोते, घेवते, धेवतियां प्रादि विशाल परिवार छोड़ गए हैं । स्वर्गस्थ भरमाको शान्ति लाभ हो, और उनके कुटुम्बीजनोंको वियोगजन्य दु.खके सहन करनेकी शक्ति प्राप्त हो, ऐसी हमारी हार्दिक भावना है। -वीर सेवामन्दिर परिवार

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