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अजमेरके शास्त्र-भण्डारसे
पुराने साहित्यकी खोज
( जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर')
(गत किरणसे आगे) ६. प्राभूतसार
जिउ'नामका परमात्मप्रकाशका भी है। परमात्मप्रकाश गत वर्षके भादों मासमें अजमेरके बड़ा घड़ा के कर्ता योगीन्दुदेवका समय डा० ए०एन० उपाध्यायपंचायती मंदिरके शास्त्र-भण्डारको छानबीन करते हुए ने ईसाकी छठी शताब्दी निर्णय किया है। उसके 'प्राभूतसार' नामका भी एक अश्रतपर्व प्राचीन ग्रन्थ अनुसार यह प्रन्थ ईसाकी छठी शताब्दीके बादका उपलब्ध हुआ है। यह ग्रंथ संस्कृत भाषामें निबद्ध गद्य
मालूम होता है। रूपको लिये हुए है और एक गुट केके प्रारम्भ में सवा . संस्कृत के जो पद्य इसमें 'उक्तंच' रूपमें उद्धृत हैं तीन पत्रों पर अंकित ७० श्लोक जितने प्रमाणवाला है
वे अभी तक किसी दूसरे ग्रंथमें अपनेको उपलब्ध गुटका चैत्र सुदि १५ सम्बत् १५०६ का लिखा हुआ है, नहीं हुए। और इससे भी यह पंथ काफी प्राचीन टोंकमें लिखा गया और वह ब्रह्म आनन्दके लिए मालुम होता है । इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है किसी शाहके द्वारा लिखाया गया है। जैसा कि पत्र कि इसमें अनेक नय-दृष्टियों को लेकर प्रायः सात प्रकार ४३-११ पर दिये गये निम्न वाक्यसे प्रकट है
के मोक्ष-मार्गका निरूपण किया है। यह ग्रंथ शीघ्र ही ___ "सम्वत् १५०६ वर्षे चैत्र सुदि १५ टोंक स्थानात्तु । अनुवादादिके साथ प्रकाशमें पानेके योग्य है। ब्रह्म प्रानन्द योग्यं पुस्तिका लिखापितं साह"
___ प्रन्थकी स्थिति बहुत ही जीर्ण-शीर्ण है। जिस ___ इस प्रन्थके कर्ता रिययनन्दि पंच-शिक्षिक देव हैं, गुटकेके प्रारम्भमें वह पाया जाता है उसके पत्र जिन्हें 'मोह-तिमिर-मार्तण्ड' विशेषणके साथउल्लेखित अलग-अलग हो गये जान पड़ते हैं और उनकी किया गया है; जैसा कि प्रथके अन्तमें दिये गए निम्न मरम्मत बड़े परिश्रमके साथ की गई है और उन्हें समाप्ति सूचक वाक्यसे प्रकट है
जोड़कर रक्खा गया है। कितने ही पत्र टूट-टाट कर "इति प्राभृतसारः समासः । मोहतिमिरमार्तण्डरियय- अलग हो गये जान पड़ते हैं । गुटकेके पत्रोंपर जो नन्दि-पंचशिक्षिकदेवेनेदं कथितं"
अंक पूर्व में दिये हुए हैं वे अनेक स्थानों पर पत्रोंके टूट ग्रंथकारका यह नाम भी अश्रुत-पूर्व है और साथ- जानेसे विलुन अथवा कुछ खंडित होगए हैं,जीर्णोद्धार में लगे हुए विशेषण उसके महत्वको ख्यापित करते करनेवालेने बड़े परिश्रमसे विषय-क्रमको लेकर उपहैं । ग्रंथ और ग्रंथकार दोनोंके नाम अन्यत्र किसी लब्ध पत्रोंपर नए क्रमसे नम्बर डाले हैं और भनेक सूचीमें भी अभी तक उपलब्ध नहीं हुए और इसलिये स्थानोंपर पुराने नम्बर भी ज्योंके त्यों अथवा खंडित प्रस्तुत ग्रंथको खोज खास महत्व रखत है। अवस्थामें अंकित हैं । एक पत्र पर, जिसका मूल.
इस ग्रंथमें गुणों, पर्यायों तथा नयों का कुछ विशेष पत्रांक नष्ट हो गया है, क्रमिक नम्बर १२ पड़ा है, रूपसे वर्णन है और अनेक स्थानोंपर कथित विषयको उसके अन्त में 'पालापपद्धति नयचक्र' नामक ग्रंथकी पुष्ट करने के लिए संस्कृतादिके प्राचीन पद्य भी उद्धत समाप्ति-सूचिका सन्धि और उसके आगे १३वं पत्रम किये गये हैं। जिसमें एक दोहा 'कारण-विरहिउ सुद्ध अपभ्रंश भाषाके 'अप्प-संवोह-कब्वो' नामक प्रथक