Book Title: Anekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 358
________________ ३०६] बनेकान्त [वर्ष १४ पं. रमाशंकरजी उसकी इन हरकतोंको एक दिन पं० रमाशंकरजी कोई नई चीज खाने देखकर बोले-कि यह सब त्रिया-चरित्र है, को लाये. लाकर रख दी। चीज रक्खी थी पर बा० जगदीशजी, अगर आप इन बातोंको ही पूछना कोई भी एक दसरेसे न कह सका कि आप खाइये ? चाहते हैं तो सुनें, मैं आज स्पष्ट रूपसे आपसे कह मनमें दोनोंके आ रही थी, पर पहले कहे क देना चाहता हूं इसके ऊपर उस ज्योतिषीकी बातोंका दोनों कभी मुस्करा जाते थे, कभी-कभी आंखोंसे पूरा-पूरा असर हो गया है, उसने कहा था कि आँखें भी मिल जाती थीं। जब सुशीला अपने 'तुम्हारे तो सन्तानका योग है और इनके नहीं है, आंचलसे अपने मुँहको ढक लेती, तब रमाशंकरपर तुम्हारे होगी जरूर' एक ताबीज ले जाना, बस जीको एक अदभुत ही आनन्द आता था मानो वे उस दिनसे ही इसमें इतना परिवर्तन हो गया कि क्षण उन दोनोंको सुहागरातकी याद दिला रहे थे। क्या पूछते हो? आठवें दिन यह उस ज्योतिषीके। आखिर सुशीलाने उसमें से एक ग्रास रमाशंकरयहाँ गई और बहुत देर में आई । मैने पूछा-कहाँ गई थीं तो बोली कि यहीं पड़ोसमें गई थी। मैंने जीके मुँहमें दिया और वे बिना आनाकानी किये इसके बाजू पर ताबीज बँधा देखा, दूसरे मैंने थोड़ी ही खा गये फिर तुरत ही उन्होंने सुशीलाको देर बाद ला० लक्ष्मीचन्दजीके यहाँ भी पूछा, पता खिलाया । फिर क्या था बोलचाल प्रारम्भ हो गई। उस दिन इतनी लाड़-प्यारकी बातें हुई मानो पिछले लगा कि यहाँ तो आज आई नहीं है और फिर उस महीनोंकी कमी पूरी कर रहे हों। दिनसे क्या कहू, घरका सारा काम ही ऊटपटांग करती है। ___ उस दिनसे दोनोंका जीवन पहलेसे भी अधिक सुशीला रोती ही रही और अपनी इस भूलपर - सुखमय हो गया। नरक स्वर्ग बन गया था और पछताती रही कि मैं ज्योतिषीके पास इनको लेकर भूला पंछी फिर लौट कर अपने घरको पाकर खुश क्यों नहीं गई ? उसका भाई बिना कुछ कहे सुने हो रहा था। थैला हाथमें लेकर चला गया। अधिक देर तक वह ____ तभी सुना कि एक बहुत ही होशियार लेडी इन बातोंको सहन नहीं कर सका और न वास्तवि डाक्टर यहाँक सरोजिनी नायडू अस्पतालमें आई कता समझ ही सका कि आखिर सत्य क्या है? है। उसने कितने ही सन्तान-हीन मां-बहिनोंके छः महीनेका समय इसी प्रकार बीत गया, प्रसिद्धि बढ चकी थी। सन्तान कर दी है। दूर-दूरसे लोग आने लगे। न कोई हँसी थी और न कोई किसी प्रकारकी चहल रमाशंकरजीने भी सुना और अपनी सुशीलाको पहल । पर अन्दर-ही-अन्दर दोनों परस्पर मिलाप- के लेकर अस्पताल पहुंच गए । लेडी डाक्टरने सारी के लिए उत्सुक हो रहे थे । पहले कौन आगे देखभाल की दवाएं दी और दो तीन महीनोंके बाद आये, यह समस्या थी । पं० रमाशंकर तो यह सोचते थे कि यह मनाये, क्योंकि मैं इसका पति ही सुशीलाकी जीवन अभिलाषा बीजरूपमें अंकुरित हूं और फिर इसकी गलती है। और सुशीला यह हो गई। माँ बननेके लक्षण उसमें आ चुके थे। सोचती थी कि ये पहन मनायें. क्योंकि उन्होंने मेरे सुशीलाने अपरिमित खुशी लेकर रमाशंकरजी ऊपर झूठा सन्देह मनमें जमा रक्खा था इसलिये से कहा तो उनकी खुशीका भी ठिकाना न रहा। इनकी गलती है और फिर ये सदा मुझे मनाते आये आज उन दोनोंके दिलसे वह सन्देह दूर हो हैं। पर समस्या हल नहीं हो पा रही थी। चुका था। अनेकान्सकी आगामी किरण संयुक्त होगी ग्रीष्मावकाशके कारण वीरसेवामन्दिरके विद्वान् पाहिर रहनेसे 1वी किरण जूनमासमें प्रकाशित नहीं हो सकेगी। किन्तु वह जुलाईमें १२वीं किरणके साथ संयुक्त रूपले प्रकाशित होगी। अतएव पाठक नोट कर लेवे और धैर्यके साथ अगली संयुक्त किरणको प्रतीक्षा करें। -व्यवस्थापक अनेकान्त सय जनाको परिवार को करेगी।

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