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* अहम
वस्ततत्त्व-सघातव
विश्व तत्त्व प्रकाशक
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वाषिक मन्य )
एक किरण का मूल्य 1)
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नीतिविरोषवसीलोकव्यवहारवर्तक सम्पन्। परमागमस्य बीज भुवनेकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ।
वर्ष १४ । वीरसेवामन्दिर, २१, दरियागंज, देहली
जून-जुलाई किरण, ११-१२ । आपाढ-श्रावण वीरनिर्वाण-संवत २४८३, विक्रम संवत २०१४ । सन १६५७
जिनस्तुति-पञ्चविंशतिका [यह पच्चीस पद्यात्मक जिनस्तुति अजमेर के भट्टारकीय भण्डारसे प्राप्त हुई है। इसके रचयिता महाचन्द्र नामक कोई प्रौढ निद्वान हैं। नामका सूचन श्लेषरूपमै पच्चीसवें पद्यमें किया गया है। इस स्तुतिको सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके पच्चीमों ही पथ पर चीस छन्दोंमें रचे गये हैं। स्तुनि प्रौढ़, प्राञ्जल एवं प्रसाद-गुणासे
युक्र है नथा मुन्दर भक्रि भावको लिए हुए है । स्तुतिक अन्तमें छन्द नाम-सूचक दो पद्य दिये हुए हैं। युगवीर] स्रग्धरा
संमारासारपाथोधिगतभवभृतां मजन यो विदित्वा, तद्धतून कर्मशत्रून जगदसुखकृतान् ध्यानखग न हत्वा । त्रैलोक्यादर्शम्पप्रकटितचरमज्ञाननेत्रेण वीक्ष्या
स्पृष्टम्नद्वशजातामिव ममवमृति मोऽस्तु मे ज्ञानभृत्य ॥१॥ इन्द्रवत्रा- मिथ्यात्वहालाहलघृणितं यज्जगत्सुधर्मामृतपानतम्तन ।
उल्लाघनां नीय सुबोधकं च शिवाध्वगं येन कृतं स्तुवे तम् ।। मत्तमयूर- गत्वा कोः खे पञ्चसहस्रोन्ननदण्डान सोपानानां विंशतिसाहससुरम्यान ।
रेजे शाला श्रीदकृता यस्य हि लोके तं वन्देऽहं शक्रनमस्य जिनदेवम ॥३॥ वसन्ततिलका- सक्-सिंह-पङ्कज-शुभाम्बर-वैनतेया, मातङ्ग गोपतियुता अथ वैनतेयाः।
चिन्हपु केकि-सुरथाङ्ग-सुराजहंसा, लक्ष्मीविधात्वनुपमा इति यस्य सन्ति । औपपूर्व छन्दः-- मुनिकल्पसुराबला नुता ऋतिका भूम-सुनागभामिनी ।
भुव-भीमन कल्पजा नरा: मदसि स्थाः पशवोऽपि तं यजे || शार्दूलविक्रीडितं- चचकचन्द्रमरीचिचामरलसत् श्वेतातपत्रे पत्
त्रैलोक्यप्रभुभावकीत्तिकथके शुम्भत्सुभृङ्गारकम ।