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किरण ११-१२]
समन्तभद्रका समय
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प्रकाशित हुआ है। इस लेखमें वे अपने पूर्व निर्णयको संशो- होना सभी विद्वान मान्य करते हैं. प्रमाणबाहुल्य उन्हें इस धित करके इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि-'यह बात असं- तथ्यको मान्य करनेके लिये बाध्य करता है। किन्तु सिंहदिग्ध रूपसे स्पष्ट हो जाती है कि स्वामी समन्तभद्र विक्रम नन्दि-द्वारा गगराज्यकी संस्थापन-तिथिके सम्बन्धमें भारी की दूसरी शताब्दीके विद्वान थे। भले ही वे इस शताब्दीके मतभेद है। फ्लीट, नरसिंहाचार्य, कृष्णास्वामी प्रायंगर, उत्तरार्धमें भी रहे हों या न रहे हों', तथा 'समन्तभद्र शामाशास्त्री, गोविन्दपै, कृष्णारापो, सिवेल, मोरेड्स, विक्रमकी दूसरी अथवा ईसाकी पहली शताब्दीका समय रामास्वामी श्रायंगर, सालतोर, श्रीकण्ठशास्त्री आदि जितने और भी अधिक निर्णीत और निर्विवाद हो जाता है।' विद्वानोंने भी गगनरेशोंके इतिहास, कालक्रम एवं अभिलेखों
विद्वान लेखकने अपने इस निर्णयका प्रधान आधार पर कार्य किया है उन सबहीने उपरोक कथित शक सम्वत् निन्नलिखित साधनोंको बनाया है
२५ वाले अभिलेखकी उपेक्षा की है और सिंहनन्दि-द्वारा (१) कथित दिगम्बर पट्टावलीका उल्लेख-६० शाके गगवंशकी स्थापना तथा इस वंशके प्रथम नरेश माधव राज्ये दिगम्बराचार्यः १७ श्रीसामन्तभद्रसूरिः।
प्रथम कोंगुणिवर्मनकी तिथि तीसरी शताब्दी ई. के मध्यके (२) कतिपय श्वेताम्बर पट्टावलियों में सामन्तभद्र नामक लगभग निश्चित की है। कुछ विद्वान् तो इस निथिको एक आचार्यके पट्टारम्भकी तिथिका वीर नि० सम्बत् ६४३, चौथी शताब्दी ईस्वीके उत्तरार्ध अथवा पांचवीं शताब्दी तथा उनके पट्टशिष्य द्वारा एक प्रतिष्ठा करानेको तिथिका ईस्वीके पूर्वार्ध तकमें निश्चित करते हैं। स्वयं लुइसराइसने वीर नि० सम्बत् ६१५ में दिया जाना ।
जिसने उक्त शिलालेखको प्रकाशित किया था उसके अाधार (३) लूइसराइस द्वारा दूसरी शती ईस्वीके अन्तके पर अपने मतमें परिवर्तन नहीं किया। राइसके मतानुसार लगभग गंगराज्यकी स्थापना करनेवाले प्राचार्य सिंहनन्दिका गंगराज्यकी स्थापना दूसरी शताब्दी ईस्वीके अन्तके लगभग समन्तभद्र के बादमें होना अनुमान किया जाना।
हुई थी और क्योंकि तामिल इतिहाप ग्रन्थ कोगुदेशराज(४) हुमच (शिमोगा, नगर तालुके ) से प्राप्त ११वीं क्कल' के लेखकने कुछ अन्य प्राधारों पर वह तिथि १८८१२वीं शताब्दी ई. के तीन शिलालेखोंमें गंगराज-संस्थापक मई तथा कांगुणिवर्मन प्रथमका समय १८६-२४०ई० सिंहनन्दिका समन्तभद्रके अन्वयमें होना सूचित किया निश्चित किया था राइमने इन तिथियोंको ही अपनी गंगजाना। और
कलानुक्रमणिकाका आधार बनाया। वस्तुतः अन्य मतोंकी (१) नंजनगूड तालुकेसे प्राप्त और एपीग्राफी कर्णा- अपेक्षा यही मत अधिक संगन एवं मान्य भी हुआ। टिकाकी जिल्द ८ में नं० ११० पर प्रकाशित वह शिलालेख इम (शक २५ वाले) शिलालेखको मान्यता प्राप्त जिसमें प्रथम गंगनरेश-द्वारा शक सम्वत् २५ (मन् १०३ नहानेका कारण यही था कि वह अभिलेख जाली अथवा ई.) में किसी दानके दिये जानेका उल्लेख है। बहुत पीछे लिम्बा गया माना जाता रहा है । भाषा और
उपरोक्त प्रमाणोंमेंसे पहले तीन मुख्तार साहब लिपि तथा उसमें उल्लेग्वित नथ्य उमके दूसरी शती ई० के सन्मुग्व उस समय भी उपस्थित थे जब उन्होंने अपना 'स्वामी प्रारम्भका हान में विरुद्ध पड़ते हैं । शक सम्बन्धी प्रारम्भिक समन्तभद्र' शीर्षक निबन्ध प्रकाशित किया था । अन्तिम दो तीन शताब्दियों में इस सम्बनके शक नामसे प्रयुक्र होने दो भी यद्यपि प्रकाशमें पा चुके थे, किन्तु उनकी ओर का कोई भी श्रसदिग्ध प्रमाण अन्यग्र नहीं मिला है । उनका ध्यान उस समय तक आकृष्ट नहीं हुआ था। अपने उत्तरापथम उदित इम संवत्का २५ वर्ष के भीतर ही प्रस्तुत निर्णयमें सर्वाधिक बल उन्होंने न. ५ वाले प्रमाण मुदर दक्षिण कर्णाटकमें प्रचलित हो जाना भी प्रायः श्रमपर ही दिया है और उसीके आधार पर समन्तभद्को प्रथम म्भव है। कांगणिवर्मन सभी गंगनरेशोंकी वंश-विशिष्ट शताब्दी ईस्वीका विद्वान् निर्णीत किया है।
उपाधि थी और 'काँगुणिवर्म धर्ममहाधिराज' के रूप में उसका किन्तु जहां तक इस शिलालेम्वका प्रश्न है, गंगवंशकी सर्वप्रथम प्रयोग इस वशके सातवें नरेश अविनीत के समय कालानुक्रमणिकाको स्थिर करने में किसी भी विद्वानने इसका से ही मिलना प्रारम्भ होता है । प्राचीन गंग अभिलेखों में से उपयोग या संकेन नहीं किया है। मैसूरके प्राचीन गंगवाडि अनेक जाली या अविश्वसनीय सिद्ध हुए हैं। स्वयं प्रविराज्यकी स्थापनामें जैनाचार्य सिंहनन्दिका प्रेरक एवं सहायक नीतका मर्करा ताम्रपत्र (शक ३८८) भी जाली अथवा