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अनेकान्त
वर्ष १४
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कौ दस्तूर आदिके नियम दिये हुये हैं। मालिकामें खेत कविने एक स्थान पर आश्चर्य प्रकट करते हुए लिखा नापनेकी विधि भी दी हुई है जो निम्न प्रकार है- है कि स्त्रीको अबला क्यों कहा जाता है। उसने तो भाज दो ऊपर चालीस को, अंगुल गिन बन ताज । तक जगतमें बहुतसे उल्लेखनीय काम किये हैं। इस भावडोरीको गज सो कही, नीकी विधि सौ साज ॥१२॥ को कविके शब्दोंमें पढ़ियेऐसे गज गनि तीन पै, गाढे को गहि बाघ ।
झूठउ अबला नाम काम सबला कीया सुन्दरि । कीजे गाढे बीस की, डोरी करिये नाप ॥१२३॥
सीह लक हारव्यउ गयउ लाजत गिरिं कंदरि । धाप नाप लामी कह, चौरी कर को जान ।
मुख मयंक हारव्यउ गयउ लाज्यो गये णंगणि। जाडोरी जिहि ठा लगे, गुन बीघा उनमान ॥१२४॥ गति गयंद हारव्यउ गयउ लाजि गयउ वीडवणि॥ इस प्रकार 'दस्तूरमालिका' भारतीय प्रथाके अनुसार
प्रथा अनुसार सुर असुर नाग नडिया नरिद सुकवि खेम जंपइ सही गणतका सामान्य ज्ञान करनेके लिये बहुत अच्छी रचना है। जिणि भमह भगि जीतो जगत अबला तसु नवजइ भण्डारमें इसकी पूर्ण प्रति नहीं है केवल १४३ पद्य उपलब्ध
कही ॥ २६ ॥ हुये हैं जिसमें से भी कुछ दोहे पूर्ण नहीं हैं। मालिकाकी
___ बावनीका अन्तिम पद्य निम्न प्रकार हैभाषा सरल है किन्तु कविके अर्थको समझने में कहीं कहीं
क्षमा खग्ग करि ग्रह्या पिसुण दह वाट पुलाइ। अटकना पड़ता है। रचना पर उर्दू भाषाका काफी प्रभाव
कागडाझ उड मंताप जाइ ज्यउ बादल वाइ॥ है। संभवतः अभी तक यह अप्रकाशित है।
क्षमा खग्ग करि ग्रह्या घणा घरि उच्छव मंगल । ८. बावनी (क्षमाहंसकृत)
संप कुटब साथि आथि ऊपजइ अनंगल ॥ राजस्थानी भाषामें निबद्ध 'बावनी के कर्ता कवि क्षमाहंम कवि क्षमाइंस खंतहि खरी वावन्नी कवि ते ते करी।
जानके चकिम प्रदेशको सुशोभित करते थे इसका सब सयण सणंता सीखतां वसुधा पिंगलइ विस्तरा ॥ तो रचनामें कहीं उल्लेख मिलता नहीं है किन्तु इतना राजस्थानी भाषा होनेसे कहीं-कहीं भाषा अति क्लिप्ट अवश्य निश्चित रूपसे लिखा जा सकता है कि क्षमाहंस जैन हो गई है लेकिन फिर भी रचना अच्छी है तथा प्रकाशित श्रावक थे तथा १७वी या उससे भी पूर्वकी शताब्दीके थे। होने योग्य है। उक्र बावनीको छोड़कर अभीतक कविकी अन्य रचना हमार 8 पश्न कल्याणक महोत्सव देखने में नहीं आयी। बावनीकी भाषा जसा कि ऊपर कहा गया है राजस्थानी
कविवर रूाचन्दका पञ्चमंगलपाठ जैन समाजमें अति है। बावनी में ५४ पद्य हैं जो सभी सवैया हैं। रचना
प्रसिद्ध है जिसको प्रारम्भिक पंक्तियां तो प्रायः सभीको याद सुभाषिन है जो संसारी जीवको प्रतियोधनेके लिये लिखी
होंगी। अभी जयपुरके गोधोंके मंदिरके शास्त्र-भण्डारमें गयी है । क्षमाय विषयको स्पष्ट करके समझानेमें कुशल
कवि हरचन्दका पञ्चकल्याणक महोत्सवकी एक हस्तलिखित
प्रति मिली है। कविने इसे सम्बत १८१३ जेठ सुदी सप्तमीथे। कहीं-कहीं पूर्व कथाओं के आधार पर भी विषयका वर्णन
के दिन समाप्त किया था, जो रचनाके अन्तिम पद्यमें किया गया है। कालकी महिमा सब कोई जानता है तथा
निर्दिष्ट हैआज तक उसके सामने सभी महापुरुषोंने हार मानी है।
तीनि तीनि वसु चन्द्र ए संवतसर के अंक । कवि कहता हैईस ईद रवि चंद चक्रधर चउमुह चलाया।
जेष्ट शुक्ल सप्तम दिवस पूरन पढी निसंक ॥११८॥ वासदेव बलदेव कालि पुणि तेही कलाया ॥
कविने अपने नामोल्लेखके अतिरिक्त अन्य कोई परिचय मांधाता बलि कन्न गयउ रद रावण सोई।
नहीं दिया है। लेकिन रचनाकालके आधार पर यह तो सागर सगर गंगेउ गया सो सेन सजाई। निश्चित है कि कवि १८वीं शताब्दी के थे। भूपति भोज विक्रम सरिस भल पुणि भले से पणि गया रचनामें 11८ पद्य हैं जिसमें दोहा, तेईसा सवैया, कवि कहिइ खेम अचरज किसउ कालइ कवसान महानाराच छन्द, पत्ता छन्द श्रादि हैं। अधिकांश पद्य
गंजिया L सवैया तेईसामें लिखे हुये हैं।