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वीर-शासन-जयन्तीका इतिहास
श्री वीरभगशनके शासन तीर्थकी जिसे स्वामी समन्त- देखा जाय तो यह तीर्थ-प्रवर्तन-तिथि दूसरी जन्मादि तिथियोंभद्रने 'सर्वोदयतीर्थ बतलाया है, उत्पत्ति पंच शैलपुर से कितने ही अंशों में अधिक महत्त्व रखती है। क्योंकि दूसरी (राजगृह) के विपुलाचल पर्वत पर श्रावण कृष्णा प्रतिपदा- पंचकल्याणक तिथियां जब व्यकि-विशेषके निजी उत्कर्षादिसे को प्रातः सूर्योदयके समय अभिजित नक्षत्र में हुई, जबकि सम्बन्ध रखती हैं तब यह तिथि पीड़ित, पतित और मार्ग: उस नक्षत्रका रुद्र मुहूर्तके साथ प्रथम योग हो रहा । च्युत जनताके उत्थान एवं कल्याणके साथ सीधा सम्बन्ध इस तीर्थको अवतार लिये २४१३ वर्ष बीत चुके है, आज रखती है, और इसलिये अपने हितमें सावधान, कृतज्ञ-जनता उसकी २४१४ वीं वर्षगाँठ है । वीरके तीर्थकी यह उ पत्ति- के द्वारा ख.सतौरसे स्मरण रखने तथा महत्त्व दिये जानेके तिथि ही 'वीरशासनजयन्ती' कहलाती है।
योग्य है। इन विचारोंके आतेही हृदयमें यह उत्कट भावना देश में धवल-जयधवल जैसे पुरातन सिद्धान्त-ग्रन्थोंका उत्पन्न हुई कि हमें अपने महोपकारी वीर प्रभु और उनके पठन-पाठन बहुत वर्षोसे उठा हुअा था, उनका नाम सुना शामनके प्रति अपने कर्तव्यका कुछ पालन जरूर करना जाता था किन्तु दर्शन दुर्लभ था। दैवयोगसे मुझे उनके चाहिये। तदनुसार मैंने १५ मार्च सन १९१६ को 'महावीरअवलोकनका सौभाग्य प्राप्त हुआ और मैंने उन परसे प्रायः की तीर्थप्रवर्तन तिथि' नामसे एक लेख लिखा और उसे एक हजार पृष्ठके नोटस लिये। नोट्सका यह कार्य प्राषाढ़ तत्कालीन 'वीर' के विशेषांकमें प्रकाशित कराया, जिसके द्वारा शुक्ला पूर्णिमा सं० १९१० ता. ७ जुलाई सन् १९३३ को जनताको इस पावन तिथिका परिचय देते हुए और इसकी श्रारा जैन सिद्धान्त भवनके संनिकट श्री शान्तिनाथजीके महत्ता बतलाते हुए इसकी स्मृतिमें उस दिन शुभ कृत्य करने मंदिरमें समाप्त हुआ। नोट्स लेते समय कुछ ऐसी प्राचीन तथा उत्मवादिके रूपमें यह पुण्यदिवस मनानेकी प्रेरणा की गाथाएँ इन ग्रन्थों में उद्धत पाई गई, जिनमें भगवान महा- गई थी और अन्त में लिखा थावीरके शासनकी उत्पत्तिके समय तथा स्थानादिका उल्लेख इस दिन महावीर-शासनके प्रेमियोंका खास तौर पर है। साथ ही यह भी उल्लेख है कि श्रावण कृष्णा प्रति- उक्र शासनकी महत्ताका विचार कर उसके अनुसार अपने पदाकी उन तिथि वर्षके प्रथम मास और प्रथम पक्षकी प्राचार-विचारको स्थिर करना चाहिये और लोकमें महावीरतिथि है। उनमेंसे दो गाथाएँ इस प्रकार है:
शासनके प्रचारका-महावीर-सन्देशको फैलानेका भरसक वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्मि सावणे बहुले। उद्योग करना चाहिये अथवा जो लोग शासन-प्रचारक कार्य में पाडिवदपुवदिवसे तित्थुप्पत्ती दु अभिजम्मि ॥२॥ लगे हों उन्हें सच्चा सहयोग एवं साहाय्य प्रदान करना सावणबहल परिवदे रुद्दमुहुत्त महोदये रविणो। चाहिये, जिससे वीर-शासनका प्रसार होकर लोकमें सुग्वअभि जिस्स पढम जोए जत्थ जुगादी मुणेयव्वा ।।३॥ शान्ति-मूलक कल्याणकी अभिवृद्धि हो।'
इन गाथाओं परसे जहां भ. महावीरके शासन तीर्थकी इसके बाद ही २४ अप्रैल सन् १९३६ को उद्धारित उत्पत्तिकी तथि मालूम करके प्रसन्नता हुई वहां यह नई होने वाले अपने वीरसंवामन्दिरमें ५ जुलाई सन् १९३६ बात मालूम करके और भी प्रसन्नता हुई कि भारतमें बहुत को वीर-शासन-जयन्तीके उत्सवका प्रथम प्रायोजन किया प्राचीन समय पहले वर्षका प्रारम्भ इसी तिथिसे हुआ करता गया और उस वकसे यह उत्सव बराबर हर साल मनाया था तथा युगका प्रारम्भ भी इसी तिथिसे होता है और जा रहा है। इसलिये इस तिथिको अनेक दृष्टियोंसे बड़ा ही महत्व प्राप्त बड़ी प्रसन्नताकी बात है कि उक्त खोजका सभी प्रमुख है। देश में सावनी-अषादीके विभागरूप जो फसली साल विद्वानोंने अभिनन्दन किया, मेरे सुझावको अपनाया, प्रचलित है वह भी उसी प्राचीन प्रथाका सूचक है, जिसकी उत्सवादिके अनुकूल अपनी आवाजें उठाई और तभीसे यह संख्या अाजकल ग़लत प्रचलित हो रही है और इस बातको पावन तिथि एक महान पर्वके रूपमें उत्सवादिके साथ बतलाती है कि वर्षारम्भ-सम्बन्धी उस प्राचीन प्रथाका किसी भारतके प्रायः सभी भागोंमें मनाई जाती है प्रतिवर्ष पत्रों में समय यह उद्धार किया गया है।
विद्वानों द्वारा इस पर लेख लिखे जाते हैं तथा वीरशासनके कृतज्ञता और उपकार-स्मरण आदिकी प्टिसे यदि अनुकूल आचरण और उसके प्रचारादिकी प्रेरणा की