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किरण ११-१२ ]
नालन्दा का वाच्यार्थ जानता है। अब थोड़े दिनका उपद्रव है सो काल मल है राग-द्वेष। सम्यग्दृष्टि इसी मलको पाकर मिट जायेगा।
निकालनेका प्रयास करता है । उसका साधन है जैसे शरीर में मल रुक जानेसे अनेकों संयम । अतः संयम-द्वारा रागको मिटाकर सुखी बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। वैद्यको हजारों रुपये बन जाओ। देकर मलको निकलवाते हैं। वैसे ही प्रात्माका
प्रेपक-कपूरचन्द्र बरैया
नालन्दा का वाच्यार्थ
(ले०-सुमेरुचन्द्र दिवाकर B. A. LL. B. सिवनी) प्राचीन भारतवर्ष के शिक्षा केन्द्रों में नालंदा विश्व. नाम श्रत था, २२३ का नाम अर्थ था और २३ वेंका विद्यालयकी बहुत प्रसिद्धि थी। डा. 'बेनीप्रसादने अपनी नाम नालंद था। पुस्तक 'हिन्दुस्तानकी पुरानी सभ्यता' (पृष्ठ ४५३) में उक्त अन्यके पृ०५६ में २३ अधिकारों के नाम इस लिखा है कि 'नालंदामें १० हजार विद्यार्थी पढ़ते थे । वहाँ प्रकार कहे गए हैं। १५१० अध्यापक थे। विद्यार्थियोंके खान-पान तथा औषधि- समय वेदालिके एतो उवसग्ग इत्थिपरिणामे । का पूर्ण प्रबन्ध था। नालंदाके संघारामको १०० ग्रामोंका
णिरयंतर-वीरथुदी कुसील-परिभासिए विरिए॥१॥ कर मिलता था।
धम्मो य अग्गमग्गे समोवसरणं तिकालग थहिदे ।। चीनी यात्री हुएनसांग वीं सदीमें भारतमें पाया
आदा तदित्थगाथा पुडरिको किरियठाणे य ॥२॥ था। वह १६ वर्ष यहाँ रहकर अपने देशको लौटा था । ।
आहारय परिणामे पञ्चक्खाणाणगारगुणकित्ती। नालंदाक बारेमें वह लिखता है कि 'वहाँ कई हजार संन्यासी विद्याध्ययन करने थे। वहाँ निःशुल्क शिक्षा थी। नालंदाके
सुद-अत्था-रणालंदे मुद्दयडज्माणाणि तेवीम ॥३॥ पुस्तकालयके नाम रत्नरंजक रत्नसागर, रत्नदधि थे।
इनमें अन्तिम पंक्रिके ये शब्द ध्यान देने योग्य हैंरत्नदधि पुस्तकालय नौ मंजिलका था।' इसिंग नामक 'सुद-प्रत्था णालदे सुद्दयडज्माणाणि तेवी॥ चीनी यात्रीने वहीं रहकर ४०० ग्रन्थोंकी प्रतिलिपि की इस पर टीकाकार प्रभाचन्द्र पंडितने प्रकाश डालते हुए थी। हुएनसांगने ६५७ ग्रन्थोंकी प्रतिलिपि कराई थी। लिखा हैनालंदाके कई ग्रन्थ लंदन और केम्ब्रिजके पुस्तकालयों में 'सुदा-श्रु ताधिकारः श्रुतस्य माहात्म्यं वर्णयति । सुरक्षित हैं। नालंदा बौद्धोंके महायान सम्प्रदायका था। अन्था-अर्थाधिकारः श्रु तस्य फलं वर्णयति ! णालंदेविक्रमकी १३ वीं सदीमें नालंदाका संहार हा था।' नालंदाधिकारो ज्योतिषां पटलं वर्णयति ॥ पृ०५८:
(बुद्ध और बौद्धधर्म-चतुरसेन शास्त्री।) सूत्रकृतांगके श्रुत नामक अधिकार में श्रतका माहात्म्य नालंदा राजगृहके समीप लगभग ६ मील पर है- बताया है । अर्थाधिकारमें श्र तका फल कहा गया है। तथा भारतशासनने अब नालंदामें पुनः एक विद्यापीठकी स्थापना नालंद नामके तेवीसवें अधिकारमें ज्यातिपी-पटलका कथन की है। जिस नालंदाने भारतमें सैकड़ों वर्षों तक शामकी है।' इससे स्पष्ट होता है कि ज्योतिर्लोक सम्बन्धी गंगा वहाई उसका अर्थ क्या है ? भगवान महावीरके शिष्य अधिकारका नाम नालंद था। गौतमगणधर-रचित प्रतिक्रमण-अन्यत्रयीसे इस प्रश्नका प्रतीत होता है देश-विदेशमें ज्ञानकी रश्मियों - द्वारा समाधान प्राप्त होता है। ईमासे छह सदी पूर्व होने वाले अज्ञान अन्धकारको दूर करने वाले विद्याके विख्यात केन्द्रगौतम स्वामीने द्वादशांग नामके पागम ग्रन्थ बनाये थे। का नाम नालंदा उक्र कारणसे रखा गया था। नभोमंडबमें उनमें दूसरे आगम ग्रन्थका नाम 'सूत्रकृतांग' है। इस सूर्य-चन्द्रादि प्रकाश देते हैं. भारतमें तथा चीन आदि सूत्रकृतांगमें २३ अधिकार थे। उसके २१वें अधिकारका देशोंमें ज्ञानका प्रकाश देने वाला वह विद्यापीठ प्रसिद्ध था।