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आ० कुन्दकुन्द पूर्ववित् और श्रुतके आद्य प्रतिष्ठापक हैं।
(श्री० पं० हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री) श्रुतावतार-प्रतिपादक ग्रन्योंके अनुसार क्रमशः कम रयणसार, १२ तत्वसार, १३ भावपार, १४ अंगपाहुड, होने वाले श्रतके धारक प्राचार्योकी ६८३ वर्षकी गणनामें १५ क्षपणपाड १७ बोधपाहुड, १८ क्रमपाहुड," यद्यपि प्रा० कन्दकन्दका नाम नहीं मिलता, तथापि उनके प्रयपाहद, २० विद्यापाहड २१ उघातपाहड. २ द्वारा रचे गये और स्वय ही रखे गये ग्रन्थोंके नामोंसे यह पाहुड, २४ लोयपाहुड, २५ चरणपाहुड, २६ समवाय. स्पष्टतः सिद्ध होता है कि वे पूर्व-श्र तके विशिष्ट अभ्यासी पाहुड, २० नयपाहुड, २८ प्रकृतिपाहुड, २६ चूणिपाहुड,
और ज्ञाता थे। जो पाठक श्र तज्ञानके भेद-प्रभेदोंसे परिचित ३० पंचवर्गपाहुड, ३१ एयमपाहुड, ३. कर्मविपायपाहुड, हैं, वे यह अच्छी तरह जानते हैं कि पूर्वोके अन्तर्गत जो ३३ विहियापाहुड, ३४ वस्तुपाहुड, ३५ सूत्रपाहुड, ३६ अधिकार होते हैं, उन्हें वस्तु कहते हैं और वस्तुके अन्तर्गत बुद्धिपाहुड, ३० पयद्धपाहुड, ३८ उत्पादपाहुड, ३६ दिच्चजो अधिकार होते है, उन्हें पाहुड कहते हैं। कुन्दकुन्दके पाहुड, ४० सिक्खापाहुड, ४. जीवपाहुड, ४२ प्राचारग्रन्थ पाहुडोंके नामसे प्रसिद्ध ही नहीं हैं, अपितु उन्होंने पाहुइ, ४३ स्थानपाहुड, ४४ प्रमाणपाहुड, ४५ पालापस्वयं ही अपने अनेक ग्रन्थोंका पाहड' नाम दिया है और पाहुड, ४. चूलीपाहुड, ४७ पट्दर्शनपाहुड, ४८ नोकम्मउसका किसी ग्रन्थके श्रादिमें, किसीके अन्तमें और किसी- पाहुड, ४६ संठाणपाहुड, ५. निलयपाड, ११ साल्मीकिसीके अादि व अन्तमें नाम-निर्देश किया है।
पाहुड इत्यादि। आदिमें नामोल्लेख
उक्र नामोंमेंसे १,२,३, ४.५और नं0 के पाहुड (१) दंमणमग्गं वोच्छामि । (दमणपाहुड, गा.१) तो श्राज उपलब्ध हैं और अपनी टीकाओंके साथ प्रकाशित (२) वोच्छामि समणलिंग पाहुडमस्थं समासेण । भी हो चुके है । शेष पाहुड़ोंकी रचना यदि सचमुच मा.
(लिंगपाहुड गा०१) कुन्दकुन्दने की है, तो निःसंदेह यह स्वीकार करना पड़ेगा अन्तमें नामोल्लेब
कि वे अगों और पूर्वोके बहुत बड़े ज्ञाता थे। ऊपर दिये गये (१) एवं जिणपण्णत्त मोक्खस्स य पाहुडं सुभत्तीए। पाहुडौंक नामोंमेंस अनेक तो उनके अगथ त पर लिखे
(मोक्खपाहुड गा. १०६) गये ग्रन्थोंकी ओर संकेत करते हैं । यथा-- (२) इलिगपाहुडमिणं । लिंगपाहुइ, गा. २२) १-प्राचारपाहुड अाचारांगका द्योतक है। संभव है कि आदि और अन्तमें नामलेलेख
मूलाचारको ही प्राचारपाहुडके नामसे उल्लेख किया गया हो। (१) आदिमें-चारित्तं पाहुडं वोच्छे । (चारिनपाहुड, गा) ५-मुत्नपाहुड सूत्रकृतांग नामक दूसरे अंगका सूचक है।
अन्तमें-फुडु रइयं चरणपाहुडं चैव । (,, गा.४४) ३-मटागपाहुड स्थानांग नामक तीसरे अंगकी ओर (२) श्रादिमें-बाच्छामि भावपाहुड । (भावपाहुढ, गा.१) मंकन करता है।
अन्तमें-इयभावपाहुडमिणं । ( ., गा. १६३) -समवाय गड चौथे समवायांगका बोधक है। (३) आदिमें-वोच्छामि समयपाहुड-(समयवाहुइ, गा.३) -कर्मविपाकपाहड ग्यारहवे विपाकसूत्रांगका द्योतक है।
अन्तमें-जो समयपाहुडमिणं । ( , गा. ४१५) शेप पाहडॉकी रचना उनके पूर्व श्रु तधरवकी परिचायक इन उल्लेखोंसे यह सिद्ध होता है कि प्रा. कुन्दकुन्द है। विम पाहुडकी रचना किप पूर्वक किम वस्तु और पूर्व-गत प्राभृतांक ज्ञाता थे। कहा जाता है कि श्रा० कुन्द- पाहुडके आधार पर की गई है, यह जाननेका यद्यपि भाज कुन्दने ८४ पाहुडोंकी रचना की है। यद्यपि श्रान वे सब हमारे सामने कोई सीधा साधन नहीं है, तथापि पूर्वोके उपलब्ध नहीं है, तथापि अनेक पाहुडोंकि नाम अवश्य मिलने नामोंके साथ कुकुन्द-रचित पाहुडोंके उद्गमस्थानरूप हैं, जो कि इस प्रकार है
पूर्वोका श्राभाम अवश्य मिल जाता है । यथा१ समयपाहुद, २ पंचस्थिकायपाहुद, ३ प्रवचनमार, समयपाहुडके विषयको देखते हुए वह प्रात्मप्रवाद नामक ४ अप्टपाहुड, ५ नियमसार, ६ जोणिसार, ७ क्रियासार, सप्तम पूर्वकी किमी वस्तुके समयपाहुइ नामक अधिकारका 2 माहारणापाहुड, लब्धिपाहुड, १० बन्धपाहुन," उपसंहार ज्ञात होता है। समयसारकी मंगन-गाथासे भी