Book Title: Anekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 370
________________ दोनों ग्रन्थ दशलक्षण पर्व तक पौने मन्यमें जैनियोंका सबसे प्राचीनतम ग्रंथ कसाय पाहुड सुत्त प्रत्येक मंदिर, शास्त्रभण्डार, और घरमें एक प्रति प्रभावनाके लिए अवश्य रखें जिस २२३ गाथामक मूल ग्रन्थकी रचना पाजसे दोजार वर्ष पूर्व श्रीगुणधराचार्यने की, जिस पर श्री यतिवृषभाचार्यने पन्द्रह सौ वर्ष पूर्व छह हजार श्लोक प्रमाण चूर्णिसत्र लिखे और जिन दोनों पर श्री वीरसेनाचार्यने बारह सौ वर्ष पूर्व साठ हजार श्लोक प्रमाण विशाल टीका लिखी तथा जिसके मूल रूपमें दर्शन और पठन-पाठन करनेके लिए जिज्ञासु विद्ववर्ग आज पूरे बारह सौ वर्षोंसे लालायित था जो मूलग्रन्थ स्वतन्त्र रूपसे अाज तक अप्राप्य था, जिसके लिये श्री वीरसेन और जिनसेन जैसे महान प्राचार्योने अनन्त अर्थ गर्मित कहा, वह मूल प्रन्यराज 'कसाय पाहुइ सुत्त' भाज प्रथम बार अपने पूर्ण रूपमें प्रकाशमें आ रहा है इस ग्रन्थका सम्पादन और अनुवाद समाजके सुप्रसिद्ध विद्वान् पं० होरालालजी सिद्धानशास्त्रीने बहुत वर्षोंके कठिन परिश्रमके बाद सुन्दर रूपमें प्रस्तुत किया है। आपने ही सर्वप्रथम धवन सिद्धान्तका अनुवाद और सम्पादन किया है यह सिद्धान्त अन्य प्रथम बार अपने हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकट हो रहा है इस प्रन्धकी खोज पूर्ण प्रस्तावनामें अनेक प्रश्रतपूर्ण प्राचीन बातों पर प्रकाश डाला गया है जिससे कि दिगम्बर-साहित्यका गौरव और प्राचीनता सिद्ध होती है। विस्तृत प्रस्तावना, अनेक उपयोगी परिशिष्ट और हिन्दी अनुवादके साथ मुलमन्थ १०००से भी अधिक पृष्ठों में सम्पन हया है। पुष्ट कागज, सन्दर छपाई और कपड़ेको पक्की जिल्द होने पर भा मुख्य कवल २०) रखा गया है। इस प्राचीनतम मन्थराजको प्रत्येक जैन मन्दिरके शास्त्र भण्डार पुस्तकालय तथा अपन सग्रहम अवश्य रखना चाहिये। भाद्र मास तक वह केवल १५ रुपए में ही दिया जायगा। पोस्टेज का २॥) अलग पड़ेगा। जैनसाहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश प्रथम भाग माजसे ५० वर्ष पूर्व जिम्होंने जैनगजट और जनहितैषीका सम्पादन करके जैन समाजके भीतर सम्पादन कलाका मागणश किया। जिनके तात्काधिक लेखोंने सुप्त जैन समाजको जाग्रत किया. जिनके क्रान्तिकारी विचारोंने समाजक भीतर क्रान्तिका संचार किया जिनके 'जिनपूजाधिकार मीमांसा' और 'जैनाचार्योके शासन भेद' नामक लेखोंने समाजक पदरी और विचारक लोगों में खलबली मचाई, जिनकी मेरी भावना और उपासनातस्यने भन और उपासकोंके हृदयम श्रद्धा और भक्रिका अंकुरारोपण किया, जिन्होंने स्वामी समन्तभद्रका इतिहास लिखकर जैनाचार्योंका समय सम्बन्धी प्रामाणिक निर्णय एवं ऐतिहासिक अनुसन्धानकरके जैन समा के भीतर नूतन युगका प्रतिष्ठान किया, जिन्होंने 'घनेकान्त' पत्रका सम्पादन और प्रकाशन करके भगवान महावीरके स्यावाद जैसे गहन और गम्भीर विषयका प्रचार किया । और जिन्होंने स्वामी समन्तभद्रके अदितीय गहन एवं गन्भीर अनेक प्रन्यों पर हिन्दी अनुवाद और भाष्य लिख कर अपन प्रकार पांडित्यका परिचय दिया, उन्हीं प्राच्य विद्यामहार्णव आचार्य श्री जुगलकिशोरजी मुख्तार 'युगवीर' के ३२ लेखोंका संशोधित, परिवर्धित एवं परिष्कृत सग्रह है। इन लेखोंके अध्ययनसे पाठकोंके हृदय-कमल जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाशसे आलोकित एवं पाहादित होंगे। पृष्ठ संख्या ७१०. कागज और छपाई सुन्दर, पक्की जिल्द होने पर भी लागतमात्र २) मनिभाईरसे मुल्य अग्रिम भेजने वालोंको १॥) रु. डाकखर्चको बचत होगी। एक साथ मंगाने वालोको दोनों ग्रन्थ २०) में मिलेंगे। मिलनेका पता-वीरसेवामन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली

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