________________
क्या भ० वर्द्धमान जैनधर्मके प्रवर्तक थे ?
(परमानन्द शास्त्री) 'भारतीय संस्कृतिका इतिहास' नामक लेखके लेखक प्रचार और परस्पर प्राचार-विचारोंका आदान-प्रदान होता रहा श्रीलीलाधरजी पांडेय हैं, जो 'भारतीय संस्कृति' नामक पत्रके है। किन्तु बौद्धसंस्कृति के जन्मदाता महात्मा बुद्ध हैं। उन्होंने सम्पादक है। आपका यह लेख २३ मई सन् ५६ के ही उपका प्रवर्तन किया है। जैनधर्मके सम्बन्धमें बौद्ध'हिन्दुस्तान' नामक दैनिक पत्रमें प्रकाशित हुआ है। लेखकने धर्मके साथ तुलना करते हुए यह कह देना कि वद्धमान या अपने उस लेखमें 'बौद्धधर्म और जैनधर्म इस उपशीर्षकके महावीर जैनधर्मके प्रवर्तक थे, इतिहासकी अनभिज्ञता और नीचे यह निष्कर्ष निकालनेका प्रयत्न किया है कि जैनधर्मके जैनसंस्कृतिके अध्ययनकी अपूर्णताका परिचायक है । क्योंकि प्रवर्तक वद्धमान थे। जैसा लेखकी निम्न पंकियोंसे प्रकट है- महावीरको हुए अभी २५८१ वर्ष व्यतीत हुए हैं। उनसे ___'वैदिक कालीन हिंसा और बलि प्रथाके व्यापक पूर्ववर्ती दो तीर्थकरोंका अस्तित्व भी ऐतिहासिक विद्वानोंने प्रचारके कारण बौद्ध और जैनधर्मोंका प्रादर्भाव हमा। स्वीकार कर लिया है। उनमें से नेमिनाथ जैनियोंक २श्व वैदिक हिंसाका व्यापक विरोध इन धर्मोक मूल उद्देश्य थे। तीर्थकर थे. जो श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे और जिनका बौधर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध और जैनधर्म के प्रवर्तक उल्लेख 'अरिष्टनेमि' के नाम किया गया है। तेवीसवें वईमान हुए।
तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ हैं, जो महावीर भगवानसं २५० इसमें सन्देह नहीं कि महात्मा बुद्ध बौधर्मके प्रवत्तक वर्ष पूर्ववर्ती है। ऐसी स्थितिमें लीलाधरजी पांडेयका वर्धथे। परन्तु जैनधर्मके प्रवर्तक महावीर या वद्धमान नहीं मानको जैन संस्कृतिका प्रवर्तक लिखना सर्वथा असत्य है। थे किन्तु वे जैनधर्मके प्रचारक थे । बर्द्धमानसे पूर्व २३ जैनधर्म या जैन संस्कृति प्राचीन कालसे अपने सिद्धांतोंतीर्थकर और हो गये हैं। उनमेंसे प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का प्रचार कर रही है। आज भी जैन संस्कृतिकी चार-पांच जैनधर्मके प्रवर्तक थे। जो मनु (कुलकर) नाभिरायके पुत्र इजर वर्ष पुरानी कलात्मक मूर्तियाँ उपलब्ध हुई हैं। हड़थे। जिन्हें आदिनाथ, आदिब्रह्मा, आदिजिन, तथा युगादि
पासे जो मूर्ति-खंड प्राप्त हुए हैं, उनमें से तीर्थकरकी जिन, अथवा अप्रजिनके नामसे उल्लेखित किया जाता है।
एक खंडित मूर्तिका चित्र अनेकान्तकी गत किरण में बेट महाभारत, भागवत और पुराण ग्रन्थों में उनका नामो- निविभाग डायरेक्टर डॉ. रामचन्दन लेख लेख हो नहीं किया गया, किन्तु उनका स्तवन भी किया
कथा के अनुवादक साथ प्रकाशित हुया है जिसका काल ऐति
I गया है। शषभदेवका भागवतके पांचवें स्कन्धमें ऋषभाव- हासिक विद्वानोंने क..या ... वर्ष ईसासे पर्व बततारके रूप में उल्लेख किया गया है और महाभारत में उन्हें लाया है। यदि भूगर्भ में दबी पड़ी जैन संस्कृतिकी महत्त्वजैनधर्मका आदि प्रवर्तक लिखा है। उन्हींके पुत्र भरतके पूर्ण सामग्रीका उद्धार हो जाय-उसे खुदवाकर प्रकाशमें नामसे इस देशका नाम 'भारतवर्षे लोकमें विभुत हुआ 18 लाया जाय. तो जन संस्कृतिकी प्राचीनता और महत्ता पर उनका निर्वाण कैलासगिरिसे हुआ है, और उनका और भी अधिक प्रकाश पढ़ सकता है। जैन संस्कृतिका चिन्ह वृषभ (नन्दि) था। उनको हुए बहुत अधिक मूल नहेश्य हिंसाका ही विरोध नहीं रहा है, किन्तु अपने समय हो गया है उसी समयसे भारतमें श्रमण और वैदिक
अहिंसा सिद्धान्तका प्रचार रहा है और है । अहिंसाका इन दोनों संस्कृतियोंका उद्भव हुआ। इनमें श्रमण संस्कृति प्रचार करते हए यदि हिंसाका या बलि प्रथाका विरोध जैन संस्कृति है। तभीसे इन दोनों संस्कृतियोंका भारतमें
भी करना पड़ा, तो उसका मूल उद्देश्य अहिंसाका ऋषभो मरुदेन्या ऋषमाद् भरतोऽभवत् ।
संरक्षण और संवद्धन हो रहा है। जैनधर्मके इस अहिंसा भरता भारत वर्ष भरतात्सुभतिस्वभूत, -अग्निपुराण सिद्धान्तने केवल भारतीय धर्मोमें ही अहिंसाकी छाप नहीं कैलाशे विमले रम्ये वृषभोऽयं जिनेश्वरः।
लगाई, किन्तु अन्य वैदेशिक संस्कृतियों पर भी अपना प्रभाव चकार स्वावतार च सर्वशः सर्वगः शिवः।-प्रभास पुराण अंकित किया है। प्राशा है 'भारतीय संस्कृतिका इतिहास दर्शयन् वर्म वीराणां सुरासुर-नमस्कृतः ।
पुस्तक के लेखक लीलाधरजी पांडेयका इससे समाधान होगा नीतित्रयस्य कर्ता यो युगादौ प्रथमो जिनः॥-मनुस्मृति और वे अपने उस पाक्यका संशोधन करनेकी कृपा करेंगे।