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किरण १.]
सन्देह कसक हृदयसे आकर मुँह पर छा जाती थी, उसकी है, उसे हमारी ज्योतिष आनती है । कुछ इधर-उधरइस प्रकारकी उदासीनता देखकर रमाशंकर भी के दृष्टान्त दे देकर उनके दिलमें बड़ा भारी दुखी होते थे और उसे हर तरहसे समझाते हुए विश्वास पैदा कर दिया । कुछ बनठनकर पोथी-पन्ने
आजकलके सुपुत्रोंका जो व्यवहार माता पिताओंके उलट.पुलटकर हिसाब-किताब लगाकर बोले-कि साथ हो रहा है, कहते थे कि देखो सुशीला भाज- आपकी मनोकामना पूर्ण होगी। ज्योतिषाचार्यजीके कलको सन्तानसे तो बिना सन्तानके ही भले। वृद्ध हो बचन सुनते ही सुशीला चौकी और सोचने लगी जाने पर सन्तान वालोंकी कितनी दुर्दशा हो जाती कि यह क्या ? बता तो रहे थे हमारे आनेकी बातें, है इसको तुमने सामने ही देखा है कि हमारे और कहने लगे हमारी मनोकामनाएँ। पड़ोसी ला लक्ष्मीचन्द्रका बुढ़ापेमें लड़कोंने क्या सुशीला इस प्रकार सोच ही रही थी, कि यह हाल कर रक्खा है । विवाह हुआ कि बहूको लेकर भापने में उन ज्योतिषीजीको कोई देर नहीं लगी। अलग हो गये। पढ़ा लिखाकर योग्य बना दिये तो तत्काल ही बोले-माप घबड़ायें नहीं, मैं वही बतानौकरी लगने पर दूर चले गये। फिर पूछा भी नहीं ऊँगा जिसके लिए आप आये हैं ? तो फिर आपने कि माँ-बाप कहाँ है। इस प्रकार समझाते रहने पर इस सामने लगे बोर्डको देख ही लिया होगा। पं सुशीलाका हृदय मातृ-स्नेहसे उमड़कर और भी रमाशंकरजी बोले-हाँ, यह लीजिये आप अपने दुखित हो जाता और सांस भरकर कहती कि चाहे प्रश्नके दस रुपये। ज्योतिषाचार्यजी रुपया लेते हुए मेरी सन्तान मुझे कितना ही दुख दे, पर..."" बोले, देखिये पंडितजी पहले बताई कड़वी बातें भी कहते-कहते निराशाके शोक-सागरमें निमग्न हो पीछे अच्छी रहती हैं। कितने ही महानुभाव प्रश्न जाती थी।
तो कितने ही पूछ लेते हैं पर प्रश्नकी फीस देने में सन्तानकी लालसामें जिसने जो-जो बताया परेशान करते हैं, इसलिए कहना पड़ता है। और सुशीलाने सब कुछ किया। न जाने किन-किन देवी- फिर आप तो भले आदमी मालूम पड़ते हैं। देवताओंको पूजा, पीरको पूजा, हनुमानको पूजा; हाँ तो फिर आप सन्तान न होनेके कारण शिव और पार्वतीको मनाया, महावीरजी जाकर दुखी हैं, पर कुछ कहते-कहते सोचमें पड़ गये. भी पूजा की, दर्शन किये सब कुछ किया। पर सब रुक गये, विचारने लगे, कुछ देरके लिए आँखें बन्द ओरसे निराशा ही मिली। किसी देवी-देवतामें की, अंगुलियों पर, स्लेट पर हिसाब-पर-हिसाब शक्ति नहीं निकली जो सन्तान उत्पन्न कर देता। लगाये और सुशीलाका हाथ तथा जन्म-कुण्डली जगके काजी-मुल्ले भगत वगैरह सबका ढोंग दिखाई देखकर बोले-कि आपके तो सन्तानका योग है, देने लगा। धर्ममें इस प्रकारके ढोंगको देखकर परन्तु रमाशंकरजीकी कुण्डलीमें सन्तानका भारी खेद और निराशा हुई।
योग नहीं है। फिर भी आपके सन्तान जरूर होगी। एक बार ऐसा हाकि ये दोनों पति-पत्नी लम्बे श्राप पाठवें दिन पाकर एक तावीज मुझसे ले तिलकधारी ज्योतिषाचार्य पं. बद्रीप्रसादजीके पास
जाँय और फिर उसका विधि-विधान मेरे बताये पहुँचे । उनका हृष्ट-पुष्ट शरीर, चौड़ा माथा और अनुसार कीजिये, सन्तान जरूर होगी। उस पर लम्बा तिलक । आसन जमाये बैठे थे। सुशीला और पं. रमाशंकरजी पांच रुपया इन दोनोंको आता देख समझने में देर नहीं लगी। और ताबीजके देकर घर चले आये, पर उन बड़े आदर-सत्कारके साथ प्रासन दिया। बच्चा ज्योतिषाचार्यजीकी बातोंसे दोनों दिलमें एक भी कोई साथ नहीं था और फिर सुशीलाके बिना दूसरेके प्रति संदेहात्मक भाव उत्पन्न होने लगे। सन्तानके शरीरको भापने में भी कोई देर नहीं लगी, रमाशंकरजी सोचने लगे-मेरे सन्तानका योग फौरन ही समझ गये। पूछा-कहिये, आनन्द तो नहीं है और इसके सन्तानका योग है और सन्तान है अच्छा तो बापने जिस कातके लिए कष्ट किया होगी भी, या क्या है। बड़ी भारी समस्या थी