Book Title: Anekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 353
________________ किरण १० सम्मेत शिखर चैत्य-परिपाटी ___[ ३०१ [३०१ तो भीलके टोलोंने बाधा उपस्थित की। शा० हीरानन्दने उन्हें वांछित देकर काम निकाला। बीच में किसी तीर्थकी भी वंदनाका उल्लेख है पर नाम स्पष्ट नहीं हैं । दस दिन वहाँ रह कर पालगंजके राजाको संतुष्ट कर वैसाख सुदि १२ को समेत सिखरकी २० टुक और बहुत सी मूर्तियोंकी वंदना की। वहाँ से लौटते हुये नवादाके रास्ते एक बड़ा जंगल पड़ा। जेठ वदी शेष राजगृहीके पांच पर्वतोंकी यात्रा की । यहाँ मुनिसुव्रतका जन्म, धन्नाशालीभदका स्थान है। यहाँ से बड़गाँव में गौतम गणधरका स्तूप और बहुतसे जैन मन्दिर व मूर्तियोंकी पूजा करते हुये संघ पटना पाया। १५ दिन वहाँ रहे । सब संघको पहिरावणी दी गई। वहाँसे संघ जौनपुर आया । वहाँ के एक मन्दिरकी बहुतसी मूर्तियोंका दर्शन कर संघ अपने नगर लौटा। अयोध्यामें पॉच तीर्थकरोंके कल्याणक रत्नपुर में धर्मनाथ, सौरीपुर, हस्तिनापुर और अहिच्छत्र पाश्वनाथकी वीरविजयने यात्रा की । इस प्रकार संघने संवत् १६६१ में बहुतसे पूर्व के तीर्थोकी यात्राके वर्णन वाली समेत शिखर चैत्य परिपाटीकी रचना की । जो आगे दी जा रही है। वीरविजय सम्मेतशिखर चैत्य-परिपाटी पणमि-गुण वास सिरि पास-पय-कयं, रचिसु संमेयगिरि, थवण निसंकयं । आगरा नगर थी, संघि जाना करी, तेमहुँ वीनवु, हरख हियदह धरी ॥॥ आगरइ पूजि नव, देहरा इक मनई, माह सुदि तेरिसई, चालि नइ सुभुदिनई। अनुक्रमइ नगर सहिजाद पुरि प्राविनइ, खमण वसही सु जिण बिंबवर बंदिनई ॥२॥ श्रेक दिन रहिय सहु, संघ भगताविना, तिहां थको चालि, प्रयाग पुरि प्रावित्रा। संवत् १६६०६२ के बीच खरतरगच्छके जै निधानने भी पूर्वदेशके बहतसे तीर्थोंकी यात्राके स्तवन बनाये हैं। वे शायद इस संघसे स्वतन्त्र रूपमें गये हों। तासु महिमा सुजिन, सैवमइ बहु भई, बहह इकथानि, गंगा जमुन सरमा ॥३॥ जैन सिद्धांत मह, वात ए परगड़ी, पायरिय अग्निमा-सुत तणी एवड़ी। गंग जल माहि, केवल लही सिव गयड. तयणु बहु जैन सुर, मिलिन उच्छव कया ॥४॥ तेणि प्रयाग इणि, नामी तीरथ काउ, भादि जिण दिव्य, बदमखय पिण इहां बाड, देहराइ भूहरह, जैन बिंब दिइ । प्रादिजिण पादुका पूजि अभिनंदिन ॥॥ दिन तीनि तिहां रहि, बाणारिसि पुरि पत्ता, सुरिज कुंड पासह, दिन उगणीस वसंता । एपिण वड तीरथ, जिन सिवमति सुकहति, इहां पास सुपास, जिणेसर जनम भणंति ॥ निरमल अलि जिहां नित, गंगा बहइ विसाला, दुइ जिणका दिहरा पूजइ सघ रसाला । नितसंघ जिमावण, मुखि धमि दिवसु लहंति, नाड़ा जिण सेअंस, सीहपुरी पूजंति ॥७॥ हिच साह हीरानंद. रंजवि साहि सलेम, तसु दूश्रा पामी, लेई बहु धन तेम। हय गय रथ पायक, विम बहु तूपकदार, निज पुत्र कलत्र सहु, साथई करि परिवार ॥८॥ प्रयाग थकी चलि, बाणारिसि पुरि श्रावह, वदि चेत नवमि दिनि, खरतर सोभ वजावइ । तिहां थी चलतां हिब, चंदपुरी छह पंथि, चंदप्रभु पगला, पूज्या निज-निज हाधि ॥६॥ सहु संघ साथई करि, प्रावइ पट्टण ठामि, दिहरइ बहुबिसु नेमीसर सिर नामी। बाहिरि गरि नव, पासइ पूज्या पाय, श्रीसेठ सुदरसया, सील सिरोमणि राय ॥१०॥ दिन पंच लगइ तीहां, सहु संघकु भगतावी, तिग जिपहर बंथा, नगर विहारई भावी। दिह हुह संघ वच्छज दोइ कोस पाणंद, पावापुरि पूज्या, पगला वीर जिणंद ॥११॥ ढाल गऊड़ी कीहिव सिव उर कइ राइ, कपट करि लेई, अदावद तिणि बहु कोयड ए, साहस पुन्य पसाय, तेहल का थयउ, साह ईधन सुबहु दीपडए।

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