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और
शाह शेरानन्द तीर्थ यात्रा-विवरण सम्मेतशिखर चैत्य परिपाटी
( श्री• अगरचन्द नाहटा) .
कविता वासी बात थानक प्राप्त सम्मेत सिखर चैत्य परिपाटीके अनसार नामक आत्मकथामें हीरानन्द मुकीमके प्रयागसे आगरेसे यह संघ यात्रा करने निकला था वहाँके संवत १६६१ चैत्र सदी२ को सम्मेत शिखर यात्राके नौ मन्दिरोंकी पूजा कर माघ सदि १३ को आगे लिये संघ निकालने और उसमें उनके पिता
पता चला। शहिजादपुरमें खमण-वसहीकी जिन खड्गसेनके सम्मिलित होनेका वर्णन इस प्रकार मूतियांकी वंदना कर एक दिन वहाँ रह कर प्रयाग दिया है--
की ओर संघ चला। प्रयाग जैन और शैव दोनोंका दोहा-आयौ संवत इक सठा, चैत मास सित दूज ॥२२३॥
तीर्थ है। गंगा जमुना सरस्वतीका संगम वहाँ हुआ साहिब साह सलीम को, हीरानन्द मुकीम ।
है। जैन ग्रन्थोंके अनुसार आचार्य अनिया पुत्रने ओसवाल कुल जोहरी, वनिक वित्तकी सीम ॥२२॥ गंगाजलमें केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष पाया और तिन प्रयागपुर नगर सौं, कीजो उद्दम सार ।
आदीश्वर भगवानने अक्षयवडके नीचे दीक्षा ली। संघ चलायौ सिखरको, तरथो गंगा पार ॥२२॥ यहाके मन्दिरके मुंहरेमें जैन मूर्तियोंकी वंदना की ठौर और पत्री वई, भई खबर जित तित्त ।
और आदिनाथकी पादुकाकी पूजा की। तीन दिन चीठी माई सैन कौं, भावहु जात निमित्त ॥२२॥
वहाँ रह कर संघ बनारस गया। यह भी जैन और खरगसेन तब उठि चले, ह तुरंग असवार ।
शिव दोनों का तीर्थ है। पार्श्वनाथ और सुपार्श्वजाइ नन्दजी को मिले, तजि कुटम्ब घरबार ॥२२७॥
नाथका जन्म यहाँ हुआ। यहाँके २ मन्दिरोंकी
यात्रा की। श्रेयांस नाथकी जन्मभूमि सिंहपुरीकी यात्राकी समाप्तिका प्रसंग निम्न रूपसे चित्रित है।
यात्रा की। सूरजकुडके पास १६ दिन रहे। चौ०-संवत सोलहस इकसठे, आये लोग संघ सौं नठे। शा.हीरोनन्द साह सलेमको प्रसन्न कर उसकी
केई उबरे केई मुए, केई महा जहमती हुए ॥२३६॥ आज्ञासे अपने परिवारके साथ यात्रा करनेको
खरगसेन पटने मौ भाइ, जहमति परे महादुख पाइ। प्रयागसे बनारस आये उनके साथ हाथी, घोड़े, उपजी विया उदरके रोग, फिरि उपसमी पाउ बल जोग ॥ रथ, पैदल और तूपकदार थे। चैत्रवदी नवमीको संघ साथ पाए निज धाम, नंद जौनपुर कियो मुकाम । इनका संघ बनारसमें आगरेके खरतर संघके साथ खरगसेन दुख पायौ बाट, घर मैं प्राइ परे फिर खाट ॥ जाकर सम्मिलित हुआ। बनारससे सघ चन्द्रपुरी हीरानंद लोग मनुहार, रहे जौनपुर मौं दिन व्यार। गया और चन्द्रप्रभुके पादुकाकी पूजा की। फिर पंचम दिवस पारके बाग, छठे दिन उठि चले प्रयाग ॥ पटने पहुंचे। वहाँ नेमिनाथ और बहुतसी मूर्तियोंदोहा-संघ फूटि चहुँ दिसि गयौ, आप आपको हो। को नमस्कार कर बाहर एंगरीमें सेठ सुदर्शनकी
नदी नाव संजोग ज्यौं, विछुरि मिलै नहिं कोई ।।२५३ पादुकाकी भी पूजा की। पांच दिन संघ वहाँ रहा
शाहीरानन्द जीके संघका विशेष विवरण फिर विहार नगरके तीन मन्दिरोंकी वंदना की। अभीतक अनुपलब्ध था कि वह संघ कौनसे रास्तेसे वहाँ दो दिन स्वामी वच्छल हुए फिर पावापुरीमें किस-किस तीर्थकी यात्रा करने गया। सौभाग्यवश महावीर भगवानके पादुकाओंकी पूजन किया। अभी हालमें ही एक हस्तलिखित गुटका मिला, फिर शिवपुरके राजाने कपट करके संघसे बहुत जिसमें खरतर गच्छके मुनि तेजसारके शिष्य अदाषट की पर अन्तमें उसे मुकना पड़ा । उसके वीर विजयने संवत् १६६१ में निकले हुए इस तीर्थ- मंत्रीको साथ लेकर वन और खालनालके भयंकर यात्री संघने कौन-कौनसे तीर्थोकी यात्रा की, इसका दोनों ओर पर्वत और ऊँचे-ऊँचे वृक्ष, मद करते विवरण दिया है।
हये हाथी वाले विकराल रास्तेसे संघ आगे बढ़ा