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२८] अनेकान्त
[वर्ष १४ विक्रम सम्वत्के प्रवर्तक विक्रमादित्य थे । भविष्यपुराणके उन्होंने आठ वर्ष तक बाल-क्रीड़ा की और सोलह वर्ष अनुसार भी इस सम्वत्की स्थापमा विक्रमने की थी। अब तक देशमें भ्रमण किया, पन्द्रह वर्ष तक अन्य धर्मका प्रश्न उठता है कि यह विक्रमादित्य कौन था और उसका पालन करते हुए यज्ञ किया और चालीस वर्ष तक जैनसमय क्या है?
धर्मका पालन करके स्वर्ग को प्रस्थान किया। इससे सिद्ध कालकाचार्यके कथानकसे भी विक्रमादित्यके अस्तित्व
होता है कि राज्यारोहण के १५ वर्ष पश्चात् विक्रमादित्यने पर पूर्ण प्रकाश पड़ता है। कहते हैं कि कालकाचार्यने
जैनधर्म ग्रहण किया था। वि० सम्बत् विक्रमादित्य के उज्जयिनीके राजा गर्दभिल्लसे अपनी बहिन सरस्वतीकी
जन्म कालसे माना जाता है, राज्य-कालसे नहीं। जिस मुक्निके लिये शकराजसे सहायता ली थी । शकराजने
सम्वत् ४७० में विक्रमादित्यके जन्मका उल्लेख है वह गर्दभिल्ल राजाको पराजित करके उज्जयिनी पर अधिकार
वीर सम्वत् है, क्योंकि इसमें इस समय के विक्रम सम्वत्, कर लिया। अभिधान राजेन्द्र भाग ५ पृष्ठ १२८६ पर
२०१३ को जोड़नेसे ४७०+२०१७-२४८३ प्रचलित वीर सं. कालकाचार्यका समय वीर नि. ४५३ माना गया है। सर्व
या जाता है। भगवाह द्वितीयके पट्ट पर बैठनेका समय सम्मतिसे धर्मप्रभसूरिकी हस्तलिखित प्रतियोंके आधार पर
विक्रम राज्य से प्रारम्भ लिखा हुआ है। इससे ज्ञात कालकाचार्यका समय भी वीर सम्बत् १५३ है । इस प्रकार
होता है कि विक्रमादित्य वीर सम्वत् ४६४ में २४ वर्ष की सिद्ध होता है कि कालकाचार्य और गर्दभल्ल समकालीन
अवस्थामें गही पर बैठे । उपरोक गाथाके अनुसार भी यही थे। पुराणोंसे भी ज्ञात होता है कि सात गर्दभिल्ल राजाओं ने राज्य किया। इसके बाद शकोंका राज्य हुआ।
ज्ञात होता है कि विक्रमादित्य २४ वर्षकी अवस्थामें ४७०+
२४ वीर सं० ४६४ में ही गही पर बैठे थे। उपरोक्त कथनसे ज्ञात होता है कि वीर मंवत् ४६६ में
जैन ग्रन्थोंसे ज्ञात होता है कि कारनीरके राजा हिणयमालवामें शकोंका राज्य स्थापित हो गया । डॉ. स्टेनकोनेके ग्रन्थ 'कारपस इन्सक्रिप्शन इनडिकेरमके लेखसे भी इस
के कोई पुत्र न था। उसकी मृत्युके पश्चात् वहां अशान्ति
फैल गई। विक्रमादित्यने वहां शान्ति स्थापित की और बातको पुष्टि होती है कि ई० पू०६० (वीर निर्वाण सम्बत् ४६६ ) में शकोंका राज्य सिंध, काठियावाड़ और
वहां का भी राजा बन गया । उसकी मृत्युके पश्चात् उसके मालवा तक फैल गया था।
पुत्र विक्रम चरित्र एवं धर्मादित्यने ४० वर्ष राज्य किया। जेन मान्यताओं के अनुसार वीर सं०४७० में विक्रमा- धर्मादित्यके पुत्र मत्यने ।। वर्ष राज्य किया। इसके बाद दित्यका जन्म हुआ। इनके पिताका नाम गन्धर्वसेन था। नत्यने १५ वर्ष तथा नहड़ एवं नहदने दस वर्ष राज्य किया। इनकी माता गुजरातके राजा ताम्रलिप्सको कन्या मदनरेखा उसके समयमें सुवर्णगिरि शिखर पर १००८ भगवान महाथी। एक बीर बालकने सारे शक वंशका नाश करके समस्त वीरके मन्दिरका निर्माण किया गया। मालवा पर अधिकार कर लिया। इसीलिए शकोंके नाश हिन्दू मान्यताओंके अनुसार विक्रमादित्यको शकारि करनेके कारण इनका नाम शकारि भी पड़ा । वसुनन्दी भी कहते हैं। इसकी ब्त्युपत्ति दो प्रकारसे की जा सकती श्रावकाचारमें मूलसंघकी पहावली दी गई है। उसमें विक्रम- है, शकानां परिः और शकाः परयो यस्य । इनके सम्बन्धमें प्रबन्धकी निन्न लिखित गाथाएँ विक्रमादित्यके सम्बन्ध में दोनों व्युत्पत्तियां ठीक जंचती हैं, क्योंकि इन्होंने शकोंका लिखी हुई हैं
नाश किया और अन्तमें उन्हींके षड़यंत्रोंसे वीरगति प्राप्त सत्तरि चउसदजुत्तो तिणकाला विक्कमो हवह जम्मो। की। जैन-प्रन्थोंसे ज्ञात होता है कि शकोंने षड्यंत्र-द्वारा अठ वरस बाल-लीला सोडस वासेहि भम्मिए देसे ॥ समुदपाल योगी द्वारा विक्रमादित्यकी हत्या करा डाली। पथरस पासे र कुणेति मिच्छोपदेस-संजुत्तो। विक्रमादित्यके सम्बन्धमें उपरोक्त वर्णनसे स्पष्ट हो चालिस वासे जिणवर-धम्म पालीय सुरपयं लहियं ॥ जाता है कि विक्रम सम्बत्के संस्थापक विक्रमादित्य है, जिनअर्थात् विक्रमादित्यका जन्म सम्वत् १७० में हुआ। का जन्म वीर निर्वाण सं० ४७० में हुआ था।
नोट-लेखकने विक्रम संवत्को विक्रमके जन्मकालका बतलानेका प्रयत्न किया है। पर वह जन्मका सम्वत् नहीं है किन्तु मृत्युका सम्वत् है जैसा कि निम्न प्रमाणोंसे प्रकट है-विकमरायस्स मरणपत्तम्स-देवसेन,दर्शनसार । 'समारूढे त्रिदिववसतिं विक्रमनपे, सहा वर्षाणां प्रभवति हि पंचाशदधिके ।' आदि-अमितगति सुभाषित. रत्न सन्दोह।
-परमानन्द जैन