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अपभ्रंश कवि पुष्पदन्त
(प्रो० देवेन्द्रकुमार, एम० ए० )
महाकवि स्वयंभू के बाद, पुष्पदन्त ही अपभ्रंश के महान कवि हुए। अपने विषयमें कविने अपनी कृतियों में जो कुछ लिखा है, उसके साक्ष्य पर इतना ही कहा जा सकता है कि वह कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे और उनके माता-पिता का नाम मुग्धादेवी और केशव भट्ट था । प्रारम्भ में कवि शैव थे, और उसने भैरव नामक किसी शैव राजाकी प्रशंसा में काव्य रचना भी की थी, परन्तु बाद में वह मान्यखेट आने पर, मंत्री भरतके अनुरोधसे जिनभक्ति से प्रेरित होकर काव्य-रचना करने लगे। ( महापुराण १ पृ० ७ ) । उनके व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन सम्बन्ध में कुछ भी जानकारी नहीं मिलती, परन्तु उनकी उक्तियोंसे यही अनुमान होता है कि वह उम्र स्वाभिमानी और एकान्त-प्रेमी जीव थे । जन्मभूमि और समय अपने जन्म-स्थान और समयके सम्बन्ध में भी कविने कोई विशेष सूचना नहीं दी, उन्होंने केवल इतना ही लिखा है कि मान्यखेट में ही मैंने अधिकांश साहित्य रचा। श्री नाथूराम प्रेमी उन्हें 'दक्षिण' में बाहर से आया मानते हैं, उनका कहना है कि एक तो अपभ्रंश साहित्य उत्तरमें लिखा गया और दूसरे पुष्पदन्तकी भाषा में द्रविड शब्द नहीं है १ । कुछ मराठी शब्द होने से उन्हें विदर्भका होना चाहिए।' पर इसके लिए ठोस प्रमाणकी आवश्यकता है। अपभ्रंश एक व्यापक काव्य भाषा थी, अतः किसी भी प्रांतका निवासी उसमें लिख सकता था। डॉ० पी० एल० वैद्य 'डोड, बोड' आदि शब्दों को द्रविड समझते हैं । कविने यह तो लिखा है (म० पु० ११०३०८,३१२) कि वे मान्यखेट पहुँचे, पर कहांसे यह नहीं लिखा । इस काल में विदर्भ साघनाका केन्द्र था, हो सकता है वे वहीं से आये हों। सौभाग्यसे कविके समयको ठीक रूप से निश्चित करनेकी सामग्री उपलब्ध है। उन्होंने धवल और जयघवल प्रन्थोंका उल्लेख किया है, जयधबला टीका जिनसेन ( वीरसेनके शिष्य) ने अमोघवर्ष प्रथम (८३७ ) के समय में
१ (जैन-साहित्य और इतिहास पू० ३०२ )
पूर्ण की थी । गायकुमार चरिकी प्रस्तावना में मान्यखेट नगरीके वर्णन प्रसंग में कवि कहता है कि वह राजा कन्द्रराय 'कृष्णराज' की कृपारणजल-वाहिनी से दुर्गम है। वैसे राष्ट्रकूट वंशमें कृष्ण नामके तीन राजा हुए हैं, परन्तु उनमें पहला शुभतुरंग उपाधिधारी कृष्ण नहीं हो सकता; क्योंकि उसके बाद ही अमोघवर्णने मान्यखेटको बसाया था। दूसरा कृष्ण भी नहीं हो सकता, क्योंकि उसके समय गुणभद्रने उत्तरपुराणकी रचना की थी, और यह पुष्पदंतके पूर्ववर्ती कवि हैं। अतः कृष्ण तृतीय ही इनका समकालीन था । कविके वर्णित कई विव रण इसके साथ ही ठीक बैठते हैं। उन्होंने लिखा है "तोडेप्पणु चोडहो ताउ सीसु" । इतिहास से यह भलीभाँति सिद्ध है कि कृष्ण तृतीय ने 'चोल देश' पर विजय प्राप्त की थी। कविने धारा-नरेश द्वारा मान्यखेटकी लूटका उल्लेख किया है १ । यह घटना कृष्ण तृतीयके बादकी और खोट्टिगदेवके समयकी है । धनपालकी 'पाइयलच्छी' कृतिसे भी सिद्ध हैं कि वि० सं० १०२६ में मालव- नरेशने मान्यखेटको लूटा २ । यह धारा-नरेश हर्षदेव था जिसने खोट्टिगदेवसे मान्यखेट छीना था । ३ अतः कविका कृष्ण तृतीयके समकालीन होना निर्विवाद है । शंका यह है कि जब महापुराण शक सं०८ में पूरा हो चुका था और उक्त लूट शक स० ८६४ में हुई तब उसका ल्लेउख कैसे कर दिया गया। हम समझते हैं उक्त संस्कृत श्लोक प्रक्षिप्त हैं ४ । यशस्तिलक
१ धारानाथ - नरेन्द्र- कोप- शिखिना दग्धं विदग्धं प्रियं क्वेदानीं वसतिं करिष्यति पुनः श्रीपुष्पदंतः कविः । २ विक्कमकालस्स गए उछत्तिसुतीरे सहस्सम्मि मालव-मरिंद घाडीए लुडिए मरणखेडम्मि" ३ ग्वालियरका शिलालेख एपि ग्राफिका इंडिका जि० १ पृ० २२६ )
४ श्री जुगलकिशोर मुक्तारने जसहर चरिउकी अंतिम प्रशस्तिके आधार पर, कविको बहुत बादका माना था। पर अब उक्त प्रशस्ति प्रक्षिप्त सिद्ध हो चुकी है।