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२३६] अनेकान्त
[वर्ण १४ उठाएगा, और मांस को छएगा भी नहीं।
मिटा सकते हैं। इसके सिवाय मांस चाहे कच्चा हो, या पकाया शाकाहार एक पौष्टिक खुराक है हुआ, गीला हो या सूखा; उसमें असंख्य सूक्ष्मजीव- भारतवासी प्रारम्भसे ही शाकाहारी रहे हैं। जिनका कि रूप-रंग मांसके ही सदृश होता है, बीचके समयमें अनार्य लोगोंके सम्पर्कसे अवश्य हमेशा पैदा होते और मरते रहते हैं। इस कारण कुछ लोगोंने मांस सेवन प्रारम्भ कर दिया, पर मांस खानेसे बहुतसे ऐसे रोग पैदा होते हैं, जोकि ऐसे लोग हमारे यहाँ घृणाकी दृष्टि से ही देखे जाते अन्न-भोजी यो शाकाहारी मनुष्योंको नहीं होते हैं। रहे हैं। विदेशों में जहाँ पर शीतकी अधिकतासे कैन्सर या नासूरका अति भयानक रोग प्रायः मांस- अन्न उत्पन्न नहीं होता था, लोग मांस-भोजी रहे भक्षी मनुष्यों को ही होता है।
हैं और निरन्तर मांस-सेवन करनेसे उनके हृदयमें इस प्रकार यदि धर्म, पवित्रता, शारीरिक शक्ति, यह धारणा घर कर गई कि शरीरको शक्तिशाली दिमागी ताकत, स्वभाव आदि किसी भी दृष्टिसे बनाने के लिए मांस खाना अनिवार्य है। पर उनकी विचारकर देख लीजिए, मांस खाना हर तरहसे यह धारणा कितनी भ्रमपूर्ण है, इसे एक जर्मनी हानिकारक और अन्न, फल, मेवा, घी, दूध आदि महिलाके ही शब्दों में सुनिएपदार्थोंका खाना लाभप्रद सिद्ध होता है।
मिस क्राउजे एक जर्मनी महिला हैं वे तीस वर्षे स्वास्थ-वृद्धि के लिए शाक-माजीका महत्त्व से भी अधिक समयसे जैनधर्मको धारण करके __ भारत शाकाहारी देश है । शरीर-रचनाके भारतमें रह रही हैं। जब आपने जर्मनीसे भारत निरीक्षणसे बोध होता है कि मानव शाकाहारी है। आनेका विचार अपने कुटुम्बी जनों और मित्रोंसे शरीर और मन पर भोजनका बड़ा प्रभाव पडता प्रकट किया, तो वे लोग बोले-तुम घास-फूस खाने है। मांस आदि आहार प्रोटीन, स्टार्च आदि द्रव्यसे वाले देशमें जाकर भूखों मर जाओगी। अन्न तो भरपूर होता है। ये द्रव्य शरीरमें सुगमतासे न घास-फूस है, उसे खाकर मनुष्य कैसे जिन्दा रह पचनेके कारण शरीरमें यूरिक एसिड जैसे विष पैदा सकता है और उससे शरीरको क्या ताकत मिल करते हैं । शरीरको विजातीय विष दुर्बल बनाते हैं सकती है ? इत्यादि । मिस क्राउजे अपने निश्चय और शरीर यन्त्रक कोमलांग पर अनुचित दबावसे पर दृढ़ रहीं और उन्होंने भारत आनेका संकल्प उनके नियमित कार्यमें शिथिलता उत्पन्न हो जाती नहीं छोड़ा। भारत आनेके बाद जब उन्हें यहाक है। जो आहार सजीव और चेतनयुक्त होता है, वही घृत-तैल-पक्व मैदा, बेसन आदिकं बने पकवानोंका शरीरमें जीवनशक्ति और उत्साह पैदा करता है। परिचय प्राप्त हुआ, तो उन्होंने मांस खानेका सदाके इस दृष्टिसे शाकभाजी ही मनुष्यका नैसर्गिक अहार लिए परित्याग कर दिया। वे मुझे बतलाती रही हैं बन सकती है।
कि अन्न-निर्मित भारतीय पकवान कितने मिष्ट - शरीरको स्वस्थ और पुष्ट रखने के लिए शरीरमें पौष्टिक होते हैं, इन्हें मैं शब्दोंमें व्यक्त नहीं कर पौन भाग क्षार और पाव भाग खटास होना आव- सकती हूँ। अपने देश-वासियोंको मैंने पत्रों में लिखा श्यक है। खटाईकी अभिवृद्धिसे बीमारियाँ पैदा है कि अन्न-भोजनके प्रति वहाँ वालोंकी धारणा होती हैं । शरीरको क्षारमय रखनेके लिए शाक- कितनी भ्रमपूर्ण है। . . भाजी ही आहारमें महत्त्वका स्थान रखती हैं।
भोजनके तीन प्रकार रोग की स्थितिमें 'शाक-भाजी खाओ' इस सूत्रका हमारे महर्षियोंने भोजनके तीन प्रकार बतलाये उच्चारण आधुनिक डाक्टर लोग भी करने लगे हैं-सात्त्विक, राजसिक और तामसिक । जिस है। शाक-भाजी प्रकृति-द्वारा मिली हई अनमोल भोजनके करनेसे मनमें दया, क्षमा, विवेक आदि भेंट है । उसका सदुपयोग आरोग्यशक्ति देता है। सात्त्विक भावोंका उदय हो, शरीरमें स्फूति और इतना ही नहीं, उसके सेवनसे हम अनेक रोगोंको मनमें हर्षका संचार हो, वह सात्त्विक भोजन है।