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किरण] रूपक-काव्य परम्परा
[२६३ मेरा ही प्रमाद है। मेरे नो पराक्रमी सुभट हैं जो जगतको कभी घरसे निकालनेका दुःसाहम हो सकेगा। उसने जो उन्माद उत्पन्न करते रहते हैं।
भारी अपराध किया है, उसका दगड दिय विना में नहीं इतनेमें वेदनीय अपनी धौंस जमाते हुए बोला-देव! रह सकता । अब चेतन पर शीघ्रहः चढाई कर देना चाहिये। मेरी महिमा तो लोकमें प्रसिद्ध ही है, मेरे दो वीर सुभट हैं राजा मोहकी समस्त सेना आनन्दभेरी बजाती हुई, जिनसे चतुर्गतिके जीव प्राकुल-व्याकुल हो रहे हैं। अन्यकी राग और द्वेषको सबसे धागे करके चेतनको जीतनको तो बात ही क्या, जिनकेपाम परमाणु मात्र भी परिग्रह नहीं चली। जब सैन्यदल चेतनके नगरक समीप पहुँचा तब है, जो ज्ञान-ध्यान और तपमें निप्ठ रहते हैं, जो समदर्शी नगरसे दूरही पडाव डाल दिया गया।
और विवेकी हैं, जिनका उपदेश कल्याणकारी है। उन्हें भी इधर जब चेतनराजाको मोहक सैन्यदलके अानका समामैंने नहीं छोड़ा, क्षण-क्षणमें सुख-दुःखका वेदन कराना ही चार मिला. तब चेतनरायने भी अपने सभी नियों और मेरा कार्य है।
सेनानायकों को बुलाया । और उनसे मोहक मैन्यदल महित अब आयुकर्मकी पारी आई, और वह अपनी ताल
भाने का ममाचार कहा । ज्ञान नामक मत्रीस चेतनरायने ठोककर बोला-दवसभी संभारी जीव मेरे श्राधीन हैं, कहा-वीर! मैं तुम पर पूगविश्वास करता हूँ। क्योंकि में उन्हें जब तक रखना है तब तक वे रहते हैं अन्यथा अनेक युद्धोंमें में तुम्हारी वीरता देख चुका हूं। तुम जैसे मृत्यूके मुखमें चले जाते है। मेरे पास चार मुभट हैं उनसे वीरोंको ही इस समय श्रावश्यकता है। तुम्हारी श्रान ही युद्ध करने के लिये कौन समर्थ है ? चारों गतिके सभी जीव मेरी शान है अतः शीघ्र ही अपना मन्यदल तैयार कर मेरे दाम हैं, मैं उन्हें छोडूं तब वे शिवपुर जा सकते हैं। उसे यहाँ लामो, भयको कोई बात नहीं है। शायद तुम्हें
इतनेमें नामकर्म बोला-देव ! मेरे बिना संसारको स्मरण होगा कि तुमने पहले कितनी ही वार मोहराजा पर कौन बना सकता है? में पुदुगलक रूपका निर्मापक हैं। विजय पाई है अतः घबराने की कोई बात नहीं है शीघ्र जिसमें पाकर चेतन निवाम करता है। मेरे तेरानवे सुभट जाइये। हैं, जो विविध रूपरंग वाले और रसीले हैं, उनका जो कोई ज्ञानदेवके निर्देशानुसार सभी सामन्त और निक सज, मुकाबिला करनेका साहम करता है तो वे उसे मरने पर धज कर श्रागए । उनमें सबसे पहले स्वभाव नामका मामंत भी नहीं छोड़ते।
बोला-- देव ! मेरी अरदास मुनिये। मुग शत्रुक नीर अब गोत्रकर्मकी पारी आई और वह बड़े दर्पके साथ नहीं लग सकते, और मैं जणमात्रमें शत्रुको गर्व रात कर बोला-देव ! मेरे दो वीर सुभट हैं, जिनका ऊँच-नीच सकता हूँ। इसलिए चिन्ताकी कोई बात नहीं है । इतनेमें परिवार है, सुर वंशका यह स्वभाव है कि वे क्षणमें रंक दूसरा मामत मुद्ध यान बड़े दपंक साथ बोला-देव ! और क्षणमें राजा करते हैं।
श्राप मुझे आज्ञा कर नो में शत्रु-मैनाको परास्तकर सकता ___ अवसर पा अन्तराय बोला, प्रभो! आप चिन्ता न करें, हूँ। मेरे आगे वह मैन्यदल वैसे ही नाशको प्राप्त होगा मेर पांच सुभट देखिये, जो रणक्षेत्रमें सबसे आगे रहते हैं, जैसे कि सूर्योदयसे ममस्त अधंकारका नाश हो जाता है। तथा हाथमें अम्त्रोंको भी ग्रहण नहीं करने देते, और चेतन- तीसरा चारित्रमूर बोला-मराराज ! मैं तण भरमें अरिका की सब सुध-बुध हर लेते है । इस तरह मोहराजाके १२० नाश कर सकता हैं । अब विवेककी पारी आई, उसने प्रधान मुभट हैं, जिनके गुणोंको जगदीश ही जानते हैं। अपना प्रभाव व्यक्त करते हुए कहा कि---मुझे देख कर ही इनके सात प्रकारके वीर हैं, जो शत्रुदल-भंजक और महा- शत्र घबरा जायगा और नाशको प्राप्त होगा, निर्भयता और सुभटकी उपाधिसे अलंकृत हैं।
शान्ति जैसे मेरे पराक्रमी वीर हैं अतः श्राप इसकी चिन्ता ____जन राना मोड़ने अपने सभी सुभटोंको सदल-बल न करें। इतने में संवेग मूर अपनी डींग हांकते हुए बोलादवा, तो उसके श्रानन्दकी सीमा न रही, वह अपनी हे देव ! में शत्रुदलके साथ घमासान युद्ध करने के लिये तैयार अपरमित शक्रि देखकर फूला न समाया और बोला- है। इसी तरह समभाव, संतोष, दान, पत्य, उपशम, और मेरे जैसे प्रतापी राजाके शासन करते हुए चेतन राजा क्या धीरज नामक अनेक शूरवीर सामन्तोंने अपनी अपनी कभी अनीति कर सकंगा और उसे मेरी पुत्रीको फिर विशेषाएँ बतलाई।