Book Title: Anekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 322
________________ संस्कारोंका प्रभाव (श्री पं० हीराबास सिद्धान्त शास्त्री) __ संस्कारोंका प्रभाव कितना प्राव और जम्म-जन्मान्तरों इसी प्रकार यदि कोई शिशु जन्म लेनेके पश्चात् तक साथ रहने वाला होता है, इस बातका कुछ जिक्र गत भूखा होने पर रोनेके बजाय अपने हाथ या पैरके अगृटेको किरण में किया जा चुका है। यदि मनुष्य स्थिर और एकाग्र मुहमें देकर चूसने लगता है, तो समझना चाहिए कि वह चित्त होकर अपने या दूसरेको प्रवृत्तियों की ओर दृष्टिपात उच्च योनिसे पाया है। देखनेमें ये बात छोटी प्रतीत होती करे, तो उसे विदित होगा कि प्रत्येक प्राणीके साथ अनेक हैं, पर उनके भीतर कुछ न कुछ रहस्य छिपा रहता है। संस्कार पूर्व जन्मसे हो साथमें लगे हुए पाते हैं। तत्काल जिन्होंने शास्त्रोंका स्वाध्याय किया है, वे जानते हैं कि उनमें उत्पन हुए बच्चेको भूख लगते हो वह चिल्लाता है और स्वर्ग और नरकसे पाकर मनुष्योंमें जन्म लेने वाले जीवों के माके द्वारा अपना स्तन उसके मुख में देते ही वह तत्काल मी चिन्ह बच्चादिका निरूपण किया गया है। उसे चूसने लगता है। तत्काल-जात बालकको यह क्रिया पुराने संस्कारोंका एक ताजा उदाहरण लीजिये। उसके मनुष्योचित पूर्व जन्मके संस्कारोंका पोषण करती है। २५ दिसम्बर सन १६ के नव भारत टाइम्स'में निम्नलिखित कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि कितने ही बच्चे समाचार प्रकाशित हुमा हैजन्म लेनेके पश्चात् भूखसे पीड़ित रोते-चिल्लाते तो है, पर माके सतत प्रयत्न करने पर भी उसके स्तनको मुंहमें नहीं _ 'रोम २४ दिसम्बर। समाचार है कि इटालियन दबाते हैं। अन्त में हताश होकर ऐसे बच्चोंके मुंहको किसी बाडकास्टिंग कारपोरेशनका कार्यालय भूत-ग्रस्त हो गया चीजसे खोलकर और उसमें चम्मच श्रादिके द्वारा दूध है। लोगोंका कहना है-यह भूत प्रातः और सायं लगभग डालते हैं, जब बच्चा उसके स्वाद प्रादिसे परिचित हो तीन बजे सीड़ियों परसे उतरकर घूमता है। एक पहरेदार जाता है, नो मां फिर अपने स्तनके पास बच्चे के मुहको जिसने इस भूतको देखा, भयभीत हो गया है उक पहरेदारको मृतकी प्रामाणिकता पर पूरा भरोसा हो गया के जाकर और उसके खुले मुंहमें अपने स्तनके दूधकी है। कुछ लोगोंका विश्वास है कि यह 'नीरो' है। कुछ धारको छोड़ती है, और उसको धीरे-धीरे अपने स्तन पानकी ओर अग्रसर करती है। इस प्रकारके बच्चोंको जन्मते खोगोंका यह भी कथन है कि यह एक मेहमान था जिसकी ही स्तन-पानकी ओर अग्रसर न होना भी प्रकारशक नहीं मृत्यु ... वर्ष पूर्व होटल में हो गई थी। अब यह होटल समझना चाहिए । हो सकता है कि बहुतसे बच्चोंके गलेकी भाई. बी. सी. के कार्यालय में तबदील हो गया है। खराबी भादि दूसरे-दूसरे कारण रहे हों, पर जिस बालकके अभी कुछ मास पूर्व जैन पत्रोंमें एक समाचार छपा शरीरमें किसी भी प्रकारको खराबो नहीं है, स्वास्थ्य अच्छा था कि अमुक मुनिराज जो कुछ दिन पूर्व सम्मेदशिखर जीकी है,गर्भके पूरे दिन बिताकर ही बाहर पाया है, उसके स्तन- वन्दना करने के भाव रखते हुए समाधि मरणको प्रात हुए पानकी गोर प्रवृत्ति न होना तो रहस्यसे रित नहीं माना थे, वे सम्मेदशिखरजी पर यात्रियोंके द्वारा ध्यानस्थ देखे जा सकता है। ऐसे बच्चोंके लिए हमारे शास्त्रों में वर्णित गये हैं। ज्ञात होता है कि उनकी प्रारमामें शिखरजीकी अनेक कारणों में से एक कारण यह भी संभव है-संभवती बन्दनाके संस्कार घर कर गये। मरकर वे देव हुए और नहीं, मैं तो निश्चित भी कहने के लिए साहस कर सकता है अपने पूर्व जन्मोपार्जित संस्कारसे प्रेरित होकर तीर्थराजकी कि वह बच्चा किमी ऐमी योनिसे पाया है, जहां पर उसे वन्दनार्थ पाये हों, और ताजे संस्कारोंके कारण मुनिका माताके स्तमसे दूध पीने के सस्कार ही नहीं पड़े हैं। संभव पूर्व वेष रखकर ध्यानादि करते हुए गिरिराज पर प्टिगोचर है कि वह नरकसे निकल कर मनुष्य हा हो. यापेमी हुए हा। पशु-पक्षियों की योनिसे माया हो, जहां पर कि माताके स्तन उपर्युक दोनों घटनाएँ पूर्व जम्मके संस्कारों के ज्वलन्त हीन होते हों, और अण्हे प्रादिसे उनकी उत्पत्ति रही हो। दृष्टान्त हैं और वे यह प्रकट करती हैं कि प्राणी जैसे अथवा यह भी सम्भव है कि वह सम्मूर्षिकम मत्स्य, संस्कार लेकर मरता है, वे संस्कार आगामी पर्यापमें कच्छप, मेंडकादि योनिका रहा हो। प्रकट होते हैं।

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