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अध्यात्म-गीत
रचयिता-युगवीर
मैं किस किसका अध्ययन करूँ! क्यों करूँ, कहाँ क्या लाभ मुझे, क्षण-दुख-सुखमें क्यों व्यर्थ परू !! नारीरूप विविध पट-भुषा,
पुद्गलके परिणमन अनन्ते, क्या क्या रंग लखू।
किससे प्रेम करूँ ! हाव-भाव-विभ्रम अनन्त है.
किसको अपना सगा बनाऊँ, किसको लक्ष्य करूँ !!१ मैं किस०
किससे क्यों विरयूँ !! मैं किस० नरके भी रूपादि विविध हैं,
इन्द्रिय-विषयोंका न पार है, क्या क्या दृश्य लखु !!
कैसे तृप्ति करूँ! मौज-शौक, बन-ठन सब न्यारी,
किस किसमें कब तक उल: मैं, किसको लक्ष्य करूँ !!२ मैं किस.
जीवन स्वल्प धरूँ !!e मैं किस० पशु-पक्षी भी विविध रूप है,
भाषा-लिपियाँ विविध अनौखी, क्या क्या भाव लखू!
किसको मान्य करूँ! बोलि-क्रिया-चेष्टाएँ अपरिमित,
किस किसके अभ्यास-मननमें, किसको लक्ष्य कहँ !!मैं किस०
जीवन-शेष करूँ !!१० मैं किस. सृष्टि वनस्पति अमित-रूपिणी,
पर-अध्ययन अपार सिन्धु है, क्या क्या रूप लखू!
कैसे पार पहँ! गुण-स्वभाव परिणाम अनन्ते,
मम स्वरूपमें जो न सहायक, किसको लक्ष्य करूं !!४ मैं किस०
उसमें क्यों विचरूँ !!११ मैं किस. भू-जल-पवन-ज्वलन नाना विध
मेरा रूप एक अविनाशी, क्या क्या गुण परखू !
चिन्मय-मूर्ति धरूँ। शक्ति-विकृतियाँ बहु बहुविध सब
उसको साघे सब सध जावें, किसको लक्ष्य करूँ !!५
क्यों भन्यत्र भ्रम !!१२ मैं किस. देवाऽऽकृतियां विविध बनी है,
सब विकल्प तज निजको ध्याऊँ, किस पर ध्यान धरूँ!
निजमें रमण करूँ। गुण-महिमा-कीर्तन असंख्य हैं,
निजानन्द-पीयूष पान कर, किसको लक्ष्य करूँ !!६ मैं किस०
सब विष वमन करूँ !! १३ मैं किस. नारकि-शकले विविध भयंकर
परके पीछे निजको भूला. किसको चित्त धरूँ !
कैसे धैर्य धरूँ! सदा अशुभ लेश्यादि-विक्रिया,
बन कर अब 'युगवीर' हृदय से, क्यों सम्पर्क करूँ !!७ मैं किस.
दूर विभाव करूँ !!१४ मैं किस किसका अध्ययन करूँ ! पर-अध्ययन छोड़ शुभवर है,
निजका ही अध्ययन करूँ।