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किरण]
पुराने साहित्यकी खोज नरामर-खगाधीशाः यस्य पाद-पारुहम् ।
नाम्ना श्रीगुणभद्र-न्याय-निपुणो वादीभ-पंचानना । वन्दितुं चोत्सुका याता: वन्दे तं जिनशासनम् ॥३॥ सागसार-विचारणैकचतुरो जीयात्सदा भूतले ।।११।। नो कवित्वं करिष्यामि केवलं लाक-रंजनम् । तत्पट्ट गुणसागरो मदहरो मानावमाने समो, पुण्याय श्रेया किन्तु भक्त्या वापरया परम् ।।४।। बालत्वेपि दिगम्बरोऽस्ति नितरां कोा प्रशस्ता महान् । ये केचिन मजनतालाक, विधन्ते गुणशालिनः । सोऽयं श्रीरविकीर्तिवाद-निपुणा भट्टारको भूतले, नमामि नततं तेभ्यो में कुर्वन्तु कृ पराम् ।।५।। नन्दत्वेव गुणाकरो वृषधरो भव्यैः सदा सेव्यतः ॥१२ सज्जनानां स्वभावोऽयं. प:-दुःखेन दु:म्विताः । योऽसौ वादि-विनोदनाद निपुणो ध्याने गतो लोनतां दुर्जनाः मपेवन मम्यक् दुखदा दोप-प्राहका॥६॥ प पाताप-विनाशनक-शशिभृच्चारित्र-चूड़ामणिः । सुखिना. सन्नु लोके ये जिनगम प्रभावकाः श्रीमन्नामकुमारसेन-गणभृद्भट्टारका सम्मतो, दया-धम-सदाचार-तत्वगः गुणशालिनः ॥७॥
जीयात्सोपि गणाधिपो गुणनिधिरासेव्यतां सज्जनः।१३ इन पद्योंमें वीरभिगवान् गौतमादि गणधर मुनीन्द्र और आम्नाये तस्य ख्यातो भुवि भरततमः पावनोभूतलेऽस्मिन् जिन-शामनकी स्तुति करते हुए कहा है कि-'यह रचना में पासासंघाधिशेऽसौ कुलबल-सबमस्तस्य भार्याऽस्ति घोषा लोकदृष्टिसे या कवित्वकी दृष्टि नहीं कर रहा हूँ किन्तु पुण्य साध्वी श्रीवा द्वितीया जिनचरणरता वाचिवागीश्वरीव
और कल्याणकी दृष्टिसे भक्रिभावको लेकर कर रहा हूँ।' गर्भे तस्या बभूव गुणगणमाहितो टोडराख्यस्तु पुत्रः ॥१५ इसके बाद सज्जनोंको नगरकार करते हुए उनका भाव भार्ये तम्य गुणाकरस्य विमले द्वे दान-पूजारते, पर-दुग्खमें दुखित होना गननाया है और दुर्जनोंको सर्पके या ज्येष्ठा गुणपावना शिमुग्बी नाम्ना हरो विश्रु।। समान दुख देने वाले और टोप-ग्राहक लिखा है । सातवें तस्या गर्भ-समुद्भवोऽस्ति नितरां यो नन्दनः शान्नधीः, पद्यमें यह आशीर्वाद दिया है कि वे सब लोग सुग्वी हों मान्यो राजसभा-सु सम्जनसभा-दासो ऋषीणां महान् । जो जिनागमके प्रभावक दे. दयाधर्म तथा सदाचारमें तत्पर वल्लभा तस्य संजाता रूप-रम्मा-विशेषतः। और गुणशाली हैं।
भर्तानुगामिनी साध्वी नाम्ना लालमती शुभा ॥१६ इन पयोंके बाद ग्रन्थमें पूजाके लिये मण्डलकी विधि टोडरस्य नृपस्य वरांगना लघुतरा गुण-दान-विराजिता। लिखी है। जिसके मधमें एक कोठा और उसके चारों ओर विमलभापि कुसुभमती परा, अजनि पुत्रद्वयो वरदायका क्रमशः १, ८, १६, २४ ३२, १८,६४, ६०, १०४ और तेपा ज्येष्ठः सकत-निरतो मोहनाख्यो विवेकी, १३६ कोष्ठक दिए हैं। ..प्टकांकी कुल संख्या २१३ होती भार्या तिम्य मुकृत-निरता नामती माथुरी या । है। यह कोष्ठक-संख्या उन मुनि-स्नूपोंकी वाचक जान पड़ती कान्त्या कामो वचन-सरसो रूप रूक्मांगदोऽपि है जो मथुरामें जीर्ण-शीर्ण अवस्थाको प्राप्त थे और जिनका भार्या गेहे कमजवदना भागमती भाग्यपूरा ॥१८॥ पुनः जीर्णोद्धार माहू रोडग्ने कराकर एक बड़ी पूजाप्रनिष्ठाकी य.सर्वपां गरिष्ठः स्यात् टोडराख्यः प्रसन्नधीः । आयोजनाको थी, जिसका उल्लेख उनके द्वारा निर्मापित स्वामीति जम्बुनाथस्य तेन कारापितं शुभम् ॥१६॥ जम्बूस्वामि-चरितमें पाया जाना है।
इस प्रशस्तिमें काष्ठासंघ परोपकार चतुर (माथुरगग्छ) इस पूजामें पाह टोहरको गुरु-परम्पग-महित एक और पुष्करगणके प्राचार्योंका उल्लेख करते हुए लोहाचार्यके प्रशस्ति दी हुई है जो इस प्रकार है :
वंशमें क्रमशः मलयकीर्ति, गुणभद्र, रवि (भानु)कीर्ति और काष्ठासंघ-परोपकार-चतुरे-गच्छे गणे पुष्करे कुमारसेनका पट्ट-परम्पराये उल्लेख किया है । और फिर लोहाचार्य-वरान्वये गुर निधिभट्टारको मा जिन् । यह बतलाया है कि कुमारसेनकी आम्नायमें पासा नामके जानात्ये जिनेश्वरस्य कथितं नत्वार्थभानं परं साह हुए, जिनकी स्त्रीका नाम घोषा था, जो साध्वी, जिनसोऽयं श्रीमलयादिकीति-विदितः सेव्यः सदा पडितः।१ चरणोंमें रत द्वितीय लक्ष्मी तथा सरस्वतीके समान थी। पट्टतस्य गुणाग्रणी समधनो मिथ्यान्धकारे रविः। घोषासे टोडर नामका पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसकी दो स्त्रियाँ श्रीमज्जैन-जितेन्द्रियोऽतितगंवारित्रचूड़ामणिः॥ थी। ज्येष्ठा स्त्रीका नाम 'हरो' था और उसके गर्भस ऋषि